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________________ ध्यान किसका करें? २३ केन्द्रित करना, भींत पर ध्यान केन्द्रित करना अथवा नासाग्र पर ध्यान केन्द्रित करना, इन सबको अनिमेषदृष्टि से देखा जाता है। यह प्रयोग सबके लिए नहीं है, किन्तु उनके लिए करणीय है, जो अवस्था प्राप्त हैं, साधना का दीर्घकाल से अभ्यास कर रहे हैं। भगवान महावीर भीत पर ध्यान केन्द्रित किया करते थे। भींत पर घण्टों तक अनिमेष प्रेक्षा का प्रयोग। आप भींत को खुली आंख से देखना शुरू करें। यदि आधा घण्टा उस अवस्था में रह जाएं तो भींत आपके लिए विचित्र बन जाएगी। न जाने कितने रंग उभरेंगे। कैसा चित्र आएगा? आप उसकी कल्पना भी नहीं कर सकते। मैंने एक चित्र सामने लेकर अनिमेषप्रेक्षा का प्रयोग किया। वह चित्र बीस मिनट में ही विचित्र बन गया। उसी में से जितने रंग उभरे, जितने परिवर्तन आए, उनका वर्णन नहीं किया जा सकता। नए-नए रूप उसी में से निकलते ही चले गए। यह पदार्थ का आलम्बन महत्वपूर्ण है। उससे भी महत्वपर्ण है शरीर का आलम्बन, शरीर के केन्द्रों पर अधिक ध्यान टिकाना। ध्यान का अगला चरण ध्यान का अगला चरण है-स्वरूप का आलम्बन। पहले ही चरण में कोई स्वरूप के आलम्बन की बात करता है तो शायद उसने स्वरूप को ठीक से समझा ही नहीं अथवा वह स्वरूप के आधार पर कोई दूसरी कल्पना कर रहा है। अगर इस सचाई को ठीक से समझ लें तो परिवर्तन आ जाए। परिवर्तन होना बहुत जटिल काम है। जब परालम्बी ध्यान में अच्छी एकाग्रता सध जाए तब आत्मालम्बी ध्यान करें। आत्मा पर ध्यान टिक जाए तो सारी चेतना बदल जाए। जिसने आत्मा का थोड़ा-सा भी अनुभव किया है, उसके मूर्छा नहीं रहेगी, ममत्व घट जाएगा, वृत्तियां बदल जाएंगी, क्रोध नहीं होगा, अहंकार नहीं होगा, सारी स्थितियां बदल जाएंगी। आत्मा का साक्षात्कार हो जाए तो क्या बचेगा, बाहर का तो कुछ बचेगा ही नहीं। केवल शेष रहेगा स्वरूप का बोध । प्रधानता किसे दें? ___मनुष्यों को अनेक भागों में बांटा जा सकता है। एक व्यक्ति चंचल होता है। एक व्यक्ति अधिक चंचल होता है, एक व्यक्ति कम चंचल होता है। हम लेश्या की दृष्टि से विचार करें तो एक व्यक्ति कृष्ण लेश्या प्रधान होता है। एक व्यक्ति नील लेश्या प्रधान होता है, एक व्यक्ति कापातल लेश्या प्रधान होता है। वैसे सब लेश्याएं व्यक्ति में मिल सकती हैं पर प्रधानता किस लेश्या की है, यह बोध आवश्यक है। लेश्या के आधार पर वर्गीकरण करें तो कहा जा सकता है-जो कृष्ण और नील लेश्या वाला है, उसका सीधे ध्यान में जाना कठिन है। उसको सबसे पहले जप और आसन का प्रयोग कराना चाहिए। आसन का प्रयोग होगा, जप का प्रयोग होगा तो एक स्थिति का निर्माण होगा। वह ऐसा करते-करते कापोत-लेश्या या तेजो-लेश्या की स्थिति में आ जाए तो फिर ध्यान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003158
Book TitleTab Hota Hai Dhyana ka Janma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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