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ध्यान का प्रारम्भ कहां से करें ?
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का काम है सड़क बना दे । कोई कार चलाये या न चलाये । तेज रफ्तार से चलाये या धीमी रफ्तार से चलाये। दूसरों को टक्कर मारता हुआ चलाये या ठीक से चलाये । यह ड्राइवर का नितांत वैयक्तिक काम है । ठीक यही बात ध्यान के संदर्भ में है कि आलम्बन' को सिखाया जा सकता है । यह गुरु का काम हो सकता है किंतु ध्यान करना नितांत वैयक्तिक है।
एक दिशा-निर्देश दिया - ध्यान का प्रारम्भ श्रुतज्ञान के माध्यम से बहुत अच्छा होता है । हम किसी एक विचार, एक आलंबन पर टिक जाएं, एकाग्रता का अभ्यास करें, यह प्रयोगात्मक पद्धति है । प्रयोगात्मकता ही हमारी विकास की यात्रा में सहायक हो सकती है। ध्यान का प्रारम्भ कहां से होता है ? ध्यान की मात्रा का विकास कैसे होता है ? ध्यान को किस प्रकार विचार से निर्विचार की ओर ले जाया जा सकता है? एकाग्रता को कैसे पुष्ट किया जा सकता है ? इन सारे प्रश्नों की अनेकांत दृष्टि से मीमांसा कर हम ध्यान की साधना करें तो हमारे लिए यह मार्ग कंटीला नहीं रहेगा, बहुत ही सरल और सरस मार्ग बन जाएगा।
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