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________________ तब होता है ध्यान का जन्म जो कुछ देना था सारा दे दिया। राजनीति का पूरा ज्ञान राजपुत्रों को दे दिया। कहानी के माध्यम से ज्ञान भी मिल गया और काम भी बन गया। इन कहानियों का संग्रह है पंचतंत्र। यह है पंचतंत्र के निर्माण की कहानी। ___ हमें यह चुनाव करना होता है कि प्रिय क्या है? जैन साहित्य में चार अनुयोग हैं, उसमें एक अनुयोग है 'धर्मकथानुयोग'। धर्मकथा के माध्यम से जनता को जितना प्रेरित किया जा सकता है, सम्बोधित किया जा सकता है, उतना द्रव्यानुयोग से नहीं किया जा सकता। द्रव्यानुयोग को समझने वाले कितने लोग होते हैं। बहुत कम लोग होते हैं, जो द्रव्य की मीमांसा को समझ पाते हैं। कहानी ऐसा माध्यम है, जिसमें विद्वान और अनपढ़, बालक और प्रौढ़-सब रुचि लेते हैं। यह सबको प्रिय लगती है। धर्मकथानुयोग का यह प्रयोजन बहुत स्पष्ट है। प्रारम्भिक चरण ___ ध्यान के मार्ग में भी इष्ट का चुनाव करना जरूरी है। ध्येय इष्ट होगा तो हमारी बुद्धि उसमें स्थिर बन जाएगी। ध्येय इष्ट नहीं है तो बुद्धि स्थिर नहीं बनेगी। हमें श्रुतज्ञान-विचार या आलम्बन का चुनाव करना है और श्रुतज्ञान में वह ज्ञान पहले लेना है, जो हमें इष्ट है, प्रिय है। इष्ट अपना-अपना अलग-अलग हो सकता है। सबको एक निर्देश नहीं दिया जा सकता। उसका स्वयं चुनाव करना होता है। केवल पद्धति को जान लें, आलम्बनों को जान लें, आलम्बनों का अभ्यास कर लें तो ध्यान का प्रारंभिक चरण उद्घाटित हो सकता है। क्या ध्यान वैयक्तिक है? ___ ध्यान वैयक्तिक भी है और ध्यान सीखा भी जा सकता है। एक व्यक्ति ने पूछा-आप शिविरों का आयोजन क्यों करते हैं? क्या ध्यान कोई सिखाने की बात है? ध्यान तो व्यक्तिगत होता है। ध्यान करने वाले की चेतना होगी तो ध्यान होगा। सिखाने वाला कैसे कराएगा? ध्यान कोई रुपया नहीं है कि जेब से निकाला और दूसरे को दे दिया। ध्यान नितांत वैयक्तिक बात है। मैंने कहा-एक पहलू से ही मत सोचो। दूसरा पहलू भी देखो। ध्यान नहीं सिखाया जा सकता, किंतु ध्यान का आलम्बन सिखाया जा सकता है, ध्यान की पद्धति सिखाई जा सकती है। ध्यान की जो प्रक्रिया है, वह सिखाई जा सकती है। ध्यान तो व्यक्तिगत ही होगा, जब व्यक्ति चाहेगा, तब ध्यान होगा। जैसे चाहेगा वैसे होगा, जितनी अर्हता है उतना होगा। सिखाया जा सकता है उसका मार्ग। सरकार सड़कों का निर्माण कर सकती है। क्या उन पर कार चलाना सरकार का काम है? कार तो ड्राईवर चलायेगा कार चलाने वाला और सड़क बनाने वाला एक नहीं होता। सड़क बनाने वाले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003158
Book TitleTab Hota Hai Dhyana ka Janma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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