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ध्यान का प्रारम्भ कहां से करें ?
बच्चे का जन्म हो गया, वह चलना कब प्रारम्भ करता है? बोलना कब प्रारंभ करता है? प्राय: एक निश्चित अवस्था होती है । प्रत्येक प्रवृत्ति का एक प्रारम्भ बिन्दु है । प्रारम्भ बिन्दु की खोज सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है। ध्यान का प्रारम्भ कब होता है? जब हमारा मन एक चिन्तन पर टिक जाए, पांच मिनट दस मिनट, बीस मिनट एक बिन्दु पर टिक जाए, यह ध्यान के प्रारम्भ का पहला बिन्दु - पहला क्षण है । चिंतन और चिंतनान्तर, ज्ञान और ज्ञानांतर होता रहता है। एक वस्तु को जाना, इतने में दूसरी वस्तु को जानने की चिंता सामने आ जाती है। चिन्तन स्थाई नहीं रहता, चक्र घूमता रहता है । एक मिनट में दस चिन्तन आ जाते हैं । यह स्थिति निर्मित हो जाए - एक चिन्तन चले, उसमें दूसरा चिन्तन बाधा न डाले । यह ज्ञानान्तर से अपरामृष्ट चेतना की जो अवस्था है, वह ध्यान का प्रारम्भ क्षण है
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ध्यान की दो स्थितियां हैं । एक स्थिति है - एक चिन्तात्मकता तथा दूसरी स्थिति है - चिन्तन का अभाव ।
अभावो वा निरोध: स्यात् स च चिन्तान्तरव्ययः । एकचिन्तात्मको यद् वा, स्वसंवित् चिन्तयोज्झिता । ।
एक विचार, एक चिन्तन का आलम्बन लिया और उसी में व्यक्ति चलता रहा, दूसरा कोई चिन्तन नहीं, ज्ञान नहीं, इस स्थिति में ध्यान का प्रारम्भ हो गया। एक चिन्तन पर स्थित रहना बहुत कठिन है और इसलिए है कि हमारे भीतर बहुत कुछ चल रहा है किन्तु हमें उसका पता नहीं चलता । निरन्तर कर्म का विपाक हो रहा है । हमारी भावधारा बदलती चली जा रही है, चित्त में परिवर्तन होता चला जा रहा है। जैसे-जैसे कर्म का विपाक होता है, हमारे जैविक रसायन बदलने शुरू हो जाते हैं । ये रसायन हमारे चिन्तन को प्रभावित करते हैं, मन की गति बहुत चंचल हो जाती है। उस अवस्था में एक चिन्तन की बात सोची नहीं जा सकती ।
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