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ध्यान की कसौटी
१८१ जायेगा-ध्यान कहां तक बढ़ा है? स्वरोदय शास्त्र का समग्र विकास श्वास के आधार पर हुआ है। जो व्यक्ति श्वास की गति को ठीक समझने लग जाता है, वह ऐसी-ऐसी भविष्यवाणियां कर देता है, जिनकी सामान्य आदमी कल्पना नहीं कर सकता। केवल श्वास के आधार पर भविष्यवाणी करने की क्षमता भी आ जाती है। वह होने वाले घटनाक्रम को पहले ही समझ लेता है। इसका कारण बनता है-श्वास की गति। संवेदनशीलता
ध्यान की सातवीं कसौटी है-संवेदनशीलता। ध्यान से आत्मसंवेदना जागी है, करुणा जगी है तो मानना चाहिए-ध्यान सध रहा है। यदि संवेदनशीलता नहीं जगी है, उतनी ही क्रूरता है जितनी पहले थी तो मानना चाहिए-ध्यान नहीं सध रहा है। अपने कर्मचारियों के प्रति, नौकरों के प्रति, पड़ोसियों के प्रति, परिवार के छोटे लोगों, स्त्रियों के प्रति-मन में वही क्रूरता है, वही क्रूर व्यवहार है, करुणा और संवेदनशीलता नहीं है तो ध्यान का क्या अर्थ होगा? दूसरे की कठिनाई को समझने की भावना नहीं है, उसे दूर करने की भावना नहीं है तो ध्यान से क्या मिला? यह कभी नहीं हो सकता कि ध्यान करने वाला व्यक्ति अपने घर से कचरा निकाले, घर की सफाई करे और उस कचरे को पड़ोसी के घर के सामने डाल दे। उसके लिए यह कभी संभव नहीं है कि अपने घर को अच्छा रखने के लिए दूसरों के घर के सामने गंदगी का ढेर कर दे। उसमें इतनी संवेदनशीलता आ जाती है, वह यह समझने लग जाता है-'पर' भी आत्मतुल्य है। मुझे जो प्रिय नहीं है, मैं दूसरे के लिए क्यों करूं? प्रसिद्ध वाक्य है-'पापाय परपीड़नम्'-परपीड़न पाप के लिए होता है। भगवान महावीर ने कहा-'जैसे तुम अपना अप्रिय नहीं चाहते वैसे ही दूसरों का भी अप्रिय मत चाहो।' ये सूत्र उसी संवेदनशीलता की अभिव्यक्ति करने वाला सूत्र है। वह न जागे तो इन शब्दों का अर्थ ही समझ में नहीं आता। संवेदनशीलता जाग जाती है, तभी इनका अर्थ समझ में आता है।
आज की स्थिति विचित्र है। हम लोग बीदासर में चातुर्मास बिता रहे थे। वहां एक घर देखा। सामने की दीवार बहुत अच्छी थी, दरवाजा बहुत अच्छा था, ताला बहुत मजबूत लगा हुआ था किन्तु पीछे से सारी भींत टूटी हुई थी। अब वह ताला क्या काम आएगा? पीछे की दीवार टूटी हुई है तो आगे की चहर-दीवारी का क्या अर्थ होगा? यदि पीछे की दीवार टूटी हुई है तो बिना ताला खोले कोई जा सकता
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