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________________ मानवीय सम्बन्ध और ध्यान १५५ लगती है? टिकट लेने जाए और बिना पूजा-पाठ किये टिकट भी न मिले तो क्या अच्छा लगता है? क्या इसका यह अर्थ नहीं है-दूसरा कोई भी भ्रष्टाचार करता है, वह अच्छा नहीं लगता, किन्तु स्वयं करता है, वह अच्छा लगता है। किसी आदमी से भ्रष्टाचार के बारे में पूछा जाए तो वह कहेगा-बहुत भ्रष्टाचार चल रहा है। आखिर क्यों चल रहा है? सबको शिकायत है तो क्यों चलना चाहिए? इसलिए चल रहा है कि शिकायत केवल दूसरों के कार्य के प्रति है, अपने कार्य के प्रति नहीं है। यदि वह शिकायत केवल अपने-अपने कार्य के प्रति बन जाए, हर व्यक्ति के मन में यह शिकायत बन जाए कि मैं ठीक नहीं कर रहा हूं तो एक दिन में भ्रष्टाचार समाप्त हो जाएगा। यदि एक गांव में एक लाख आदमी हैं, सबके मन में शिकायत है पर वह है निन्यानवें हजार नौ सौ निन्यानवें के प्रति। ऐसी स्थिति में तालाब दूध के स्थान पर पानी से ही भरेगा। ___ बहुत प्रसिद्ध कहानी है। राजा ने आदेश दिया-आज तालाब को दूध से भरना है। उसमें पूरे नगर के लोग एक-एक लोटा दूध डालें, तालाब दूध से भर जाएगा। आदेश प्रसारित हो गया। एक आदमी के मन में आया, सारे नगर के लोग एक-एक लोटा दूध डालेंगे और मैं एक लोटा पानी डाल दूंगा तो क्या फर्क पड़ेगा? ऐसे ही दूध में पानी मिलाया जाता है, फिर पूरे तालाब में एक लोटे का क्या फर्क पड़ेगा? सबके मन में यही विकल्प उठा। सुबह राजा अपने मंत्री के साथ तालाब पर गया। वह यह देख अवाक रह गया-परा तालाब पानी से भरा है, दूध का नामोनिशान भी नहीं है। जो एक के मन में आएगा, वह सबके मन में क्यों नहीं आएगा? तर्क तो सबके लिए समान है। वैसे ही शायद सबके मन में आ रहा है-वह भी भ्रष्टाचार कर रहा है, वह भी कर रहा है, तो मैं क्यों न करूं? यह बहती गंगा घर आ गई है, मैं भी उसमें हाथ क्यों न धोलूं? यदि एक व्यक्ति के मन में यह भावना आती, भई ! दूसरा चाहे कुछ भी डाले, मैं तो एक लोटा दूध डालूंगा तो दूसरा और तीसरा भी शायद यही सोचता। सबके मन में यह चिन्तन उभरता तो प्रात:काल पूरा तालाब दूध से लबालब भरा मिलता। सब एक-एक लोटा दूध डालेंगे तो एक लोटा पानी का क्या फर्क पड़ेगा। यह चिन्तन जो हो रहा है, वह क्यों हो रहा है? इसलिए कि चित्त की शुद्धि नहीं है। चित्तशुद्धि के बिना यही चिन्तन होगा, यही क्रिया होगी और यही परिणाम आएगा। __ आज हमारे सामने समस्याओं का ढेर है। सामाजिक और राजनीतिक समस्याएं हैं, आर्थिक और धार्मिक समस्याएं हैं, वैयक्तिक और सामूहिक समस्याएं हैं। सब प्रकार की समस्याओं के लिए अलग-अलग उपाय भी खोजे जा रहे हैं और समाधान भी किये जा रहे हैं। किन्तु सब समस्याओं को पैदा करने वाली जो मूलभूत समस्या है, वह है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003158
Book TitleTab Hota Hai Dhyana ka Janma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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