SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 154
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सामाजिक समता और ध्यान समता और समाज में समता, यह किसा एक व्याक्त का प्रश्न नहा ह । वतमान परिस्थिति को देखें तो अनेक सामाजिक विषमताएं उभरकर सामने आती हैं। सामाजिक विषमता में कुछ प्राकृतिक बातें भी हो सकती हैं किन्तु बहुत सारी बातें मान्यता, प्रकल्पना के आधार पर बनी हुई हैं। एक उदाहरण है जातिवाद । एक आदमी उच्च जाति का है, एक आदमी निम्न जाति का। जो निम्न जाति का है, वह छोटा है और जो उच्च जाति का है, वह बड़ा है। एक स्पृश्य है और दूसरा अस्पृश्य। वर्णवाद के आधार पर यह विभाजन हो गया। एक काला है और दूसरा गोरा । गोरे को महत्त्व प्राप्त है और काले को महत्त्व प्राप्त नहीं है। प्रश्नचिह्न हैं विषमताएं जाति, वर्ण, लिंग आदि के आधार पर जो विषमताएं समाज में चल रही हैं, वे आज प्रश्नचिह्न बन चुकी हैं। आज का मानस उन विषमताओं के प्रति उद्विग्न है। वह नहीं चाहता कि ये विषमताएं रहें, किन्तु फिर भी चल रही हैं। पुराने बद्धमूल संस्कार अथवा अहंभाव उन विषमताओं को बनाए हुए हैं। अहं के चक्र को तोड़ना कोई साधारण घटना नहीं है। एक बार जो बड़ा कहला गया, बड़ा बन चुका, वह फिर से सबके सामने साधारण रूप में आए, समान रूप में आए, यह उसको मान्य नहीं होता। इस स्थिति में अहंकार बाधक बन जाता है। वह सोचता है-मैं बड़ा कहलाने वाला, उच्च जाति का कहलाने वाला आज निम्न वर्ग के साथ रहूं, बैहूं या बातचीत करूं, तो कैसा लगूंगा? मैं भी उसी श्रेणी में आ जाऊंगा। यह अहं की वृत्ति समानता की वृत्ति को उभरने से पहले ही दबा देना चाहती है, इसीलिए समाज में संघर्ष चलता है संघर्ष अनेक प्रकार के होते हैं। व्यक्तिगत संघर्ष भी होता है समूहगत संघर्ष भी होता है। आज संघर्ष का एक नया रूप बन गया वर्ग-संघर्ष । वह मिल-मालिक और मजदूरों के बीच चलता है, शोषक और शोषित के बीच चलता है। इसी आधार पर मार्क्स ने कहा था--यह वर्ग-संघर्ष अनिवार्य है, ऐतिहासिक सचाई है। वर्ग-संघर्ष के आधार पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003158
Book TitleTab Hota Hai Dhyana ka Janma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy