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तनाव और ध्यान
१३९ जीवन और मरण-दोनों तनाव पैदा करते हैं, किन्तु जिस व्यक्ति ने अपने मन को शिक्षित कर लिया, उसके जीवन और मरण तनाव का कारण नहीं बनेंगे। जो अनशन पूर्वक समाधि मरण की प्रक्रिया में चलते हैं, उन्हें मरने का कोई डर नहीं होता, कोई तनाव नहीं होता। निंदा और प्रशंसा
निंदा और प्रशंसा भी तनाव पैदा करती है। बहुत ज्यादा प्रशंसा होती है तो आदमी सुनते-सुनते ऊब जाता है, एक तनाव पैदा हो जाता है। निंदा सुनते ही आदमी का आवेश प्रखर हो जाता है, चेहरा तनाव से भर जाता है। जिस व्यक्ति का मस्तिष्क प्रशिक्षित है, वह न प्रशंसा की स्थिति में तनाव में आएगा और न निंदा की स्थिति में तनाव में जाएगा।
___पूज्य गुरुदेव कहते हैं-'मैंने जीवन में बहुत प्रशंसा पाई और बहुत निंदा भी सुनी। अगर ये दोनों नहीं होते जीवन में संतुलन नहीं बनता।' कोरी प्रशंसा आदमी को फूलने का मौका देती है, गर्व से भर देती है और कोरी निंदा हीनभावना पैदा करती है। हीन भावना और अहं भावना-दोनों से वही व्यक्ति बच सकता है, जिसने अपने आप को शिक्षित कर लिया। जिसका मस्तिष्क शिक्षित हो गया, वह दोनों स्थितियों में सम रह सकता है। सम्मान और अपमान
सम्मान और अपमान-ये दोनों जटिल स्थितियां हैं। सम्मान मिलता है, एक अलग प्रकार का तनाव पैदा हो जाता है। जैसे ही सम्मान मिलता है, व्यक्ति की चाल बदल जाती है। वह अकड़कर चलता है। उसका मुंह ऊपर हो जाता है, वह मुंह उठाकर ही नहीं देखता। आकृति बदल जाती है, भाव-भंगिमा बदल जाती है। यदि मस्तिष्क शिक्षित हो जाता है तो दोनों स्थितियों में समता बनी रहती है। अपमान हे जाए तो वही बात और सम्मान मिल जाए तो वही बात । वह इस सचाई को समझ लेत है-आत्मा में न सम्मान है, न अपमान, किन्तु वह समान है। समान है इसलिए सम्मान और अपमान की कोई बात नहीं है। ये सब केवल लुभाने वाली बातें हैं और वह उनसे ऊपर उठ जाता है।
___ एक दार्शनिक संत बहुत पहुंचा हुआ था। लोग उसकी बात को समझ नहीं प रहे थे। वे बहुत बार उसके बारे में ऊटपटांग बातें भी कर जाते। उसकी निंदा र्भ करते। ऐसा होना अस्वाभाविक नहीं है। लोग सुकरात के तत्त्वज्ञान को समझ नहीं पाए जहर की प्याली पिला दी। आचार्य भिक्षु को समझ नहीं पाए, न जाने कितनी कठिनाइय झेलनी पड़ी और कितनी निंदा हुई। आचार्य भिक्षु ने अपने जीवन में जितना अपमान
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