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ध्यान और परिवार
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तत्त्व है। जैन तत्त्व विद्या में नौ तत्त्व बतलाए गए हैं । उसमें दो महत्वपूर्ण हैं संवर और निर्जरा । संवर का काम है- बाहर से जो गन्दगी आ रही है, उसे रोक देना, दरवाजा बन्द कर देना । जब-जब आंधियां आती हैं, मकानों के दरवाजे बंद हो जाते हैं, खिड़कियां बंद हो जाती हैं । दरवाजों को बंद कर देना, इसका नाम है संवर। जो भीतर कचरा जमा हुआ है, विजातीय तत्त्व है उसे निकाल देना, उसका शोधन करना, इसका नाम है निर्जरा । शीतलहर से बहुत ग्रस्त होते हैं, टाइफाइड भी होता है। टाइफाइड का मुख्य कारण बनता है पेट में जमा हुआ कचरा । प्राकृतिक चिकित्सा की भाषा में कारण है- विजातीय तत्त्व । जितना विजातीय तत्त्व जमा हुआ है उतना ही आदमी ज्यादा बीमार पड़ता है। उसकी रोग-प्रतिरोधक शक्ति कम हो जाती है। टाइफाइड निकलने में पेट की खराबी बहुत ज्यादा कारण बनती है ।
जरूरत है विरेचन की
हर आदमी के भीतर कर्मों का, संस्कारों का, न जाने कितना विजातीय तत्त्व जमा हुआ है । उसका तब तक शोधन नहीं होगा, जब तक निषेधात्मक विचार आते रहेंगे। बहुत बुरे विचार आते हैं तो समझना चाहिए - भीतर में बहुत कचरा जमा हुआ है, जुलाब लेने की जरूरत है, पेट की सफाई करने की जरूरत है, रेचन- विरेचन की जरूरत है। उसके बिना बुरे विचारों का आना बन्द नहीं होगा । विरेचन करने के लिए ध्यान करना बहुत जरूरी है। ध्याया के द्वारा कर्मों की विरेचना होती है । बहुत तेज निर्जरा होती है ध्यान के द्वारा । ध्यान एक ऐसी अग्नि है, जो कर्म को जला डालती है। गीता में ज्ञान को अग्नि माना गयाज्ञानाग्निदग्धकर्माणः तमाहुः पण्डितं बुधा: - ज्ञानी मनुष्य ज्ञान की अग्नि से कर्मों को दग्ध देता है, जला देता है । ध्यान ज्ञान से अधिक शक्तिशाली है। ज्ञान में फिर भी थोड़ी चंचलता रहती है किन्तु ध्यान में तो बिल्कुल एकाग्रता की स्थिति बन जाती है। चेतना का ध्यान, अपनी आत्मा का ध्यान मलिनता पैदा करने वाला यान नहीं है । वह निर्मलता, ज्योति और प्रकाश का ध्यान है ।
वहां आते हैं नकारात्मक विचार
जो व्यक्ति आत्मा का ध्यान करता है, उसका चित्त निर्मल बन जाता है, मैल सारा छंट जाता है। व्यक्ति इस बात को लेकर ध्यान में बैठ जाए - मैं चैतन्यमय हूं, राग और द्वेष करना मेरा स्वभाव नहीं है । प्रियता और अप्रियता मेरा स्वभाव नहीं है । लड़ाई करना मेरा स्वभाव नहीं है, मैं केवल ज्ञाता - द्रष्टा हूं । जिस व्यक्ति ने इस प्रकार अपने स्वभाव पर ध्यान करना शुरू कर दिया, उसके मन में बुरे विचार नहीं आते। बुरा विचार आने का रास्ता बंद हो जाता है । जो आत्मा का ध्यान नहीं करता, अपनी चेतना
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