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तब होता है ध्यान का जन्म
दर्शकों ने कहा- - भई ! आज तो इसे स्वर्णपदक मिलेगा ।' सचमुच उसे स्वर्ण पदक मिल गया। लोगों ने पूछा- भाई ! तुम इतने मजबूत कैसे रहे? उसने सोचा- यह तो मेरी पत्नी का प्रताप है । वह मुझे बेलन से रोज पीटती थी । उसने पीट-पीटकर मुझे इतना मजबूत बना दिया कि इन मुक्कों का क्या असर होता ?
नारदजी ने कहा–'अरे ! यहां कहां से आई तुम्हारी पत्नी।'
ऋषिवर ! आपने कहा था- 'जो मुंह से मांगोगे, वह मिल जाएगा। मैंने भोजन की कल्पना की, भोजन मिल गया । शय्या चाही, तो शय्या तैयार । सो गया । मन में आया, कोई पगचम्पी करे तो अच्छा रहे । अप्सराएं तैयार थीं। सोते-सोते मन में यह विचार आया- अगर पत्नी ने यह देख लिया तो मुझे झाडू से पीटेगी। इतने में तो पत्नी भी तैयार और झाडू भी तैयार । जब से यह आई है तब से मैं डरकर भाग रहा हूं। मैं आगे और यह मेरे पीछे दौड़ रही है ।
नारद ने कहा-' - 'मूर्ख ! स्वर्ग में आ गया, कल्पवृक्ष के नीचे आ गया फिर ऐसा बुरा विचार तुमने किया ही क्यों ?'
नकारात्मक दृष्टिकोण
यह निषेधात्मक विचार - नकारात्मक दृष्टिकोण व्यक्ति का पीछा नहीं छोड़ता । अनेक व्यक्ति आते हैं और कहते हैं - बुरे विचार आते हैं। पता नहीं, कितनी व्यापक बीमारी है । कुछ लोग कहते हैं - बार-बार आत्महत्या का विचार आता है । कोई कहता है - किसी को मारने का विचार आता है। कोई कहता है यह दुर्घटना करने का विचार आता है। भय, घृणा आदि बुरे विचार बहुत सताते हैं । यह नकारात्मक दृष्टिकोण, नकारात्मक विचार का भूत पीछे लगा हुआ है । शायद भूत कहीं पीछा भी छोड़ दे पर नकारात्मकता का भूत पीछा नहीं छोड़ रहा है। इस नकारात्मक दृष्टिकोण के कारण नकारात्मक विचार के कारण कभी निराशा के भाव जागते हैं, कभी हीन भावना और कभी अहं की भावना जागती है । परस्पर में संघर्ष पैदा होता है, पारिवारिक जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है। ऐसा लगता है जीवन संघर्षमय और अशांति का पुतला जैस बन गया है।
पैदा करें विधायक भाव
इस नकारात्मक दृष्टिकोण को बदलने का नकारात्मक विचारों से बचने क उपाय है- सकारात्मक भावों को पैदा करना, विधायक भावों को उपजाना। विधायक भावों की उत्पत्ति का मुख्य कारण बनता है ध्यान । ध्यान केवल एकाग्रता के लिए नह है। ध्यान वह है, जो चित्त की निर्मलता पैदा करे, कषाय-क्रोध, मान, माया, लोभ क अल्पीकरण करे, जिसके द्वारा पुराने संस्कारों की निर्जरा हो । निर्जरा बहुत महत्त्वपू
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