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________________ पर्यावरण और ध्यान ११७ है। आज पूरा वातावरण आर्थिक बन रहा है। उपभोक्तावाद मनुष्य पर हावी हो गया है। वह सूत्र आज प्रभावी है-खूब कमाओ, खूब खर्च करो। इसने मनुष्य को उच्छृखल बना दिया। यह सूत्र चाहे अर्थ-शास्त्रियों ने दिया, चाहे समाजशास्त्रियों ने दिया, पर इतना निश्चित है कि यह सूत्र उन लोगों ने दिया, जो ध्यान करने वाले नहीं हैं, केवल चंचलता में जीने वाले हैं। शायद उन्होंने समझा कि यह बहुत सीधा सूत्र है, इससे विकास भी हुआ है। पदार्थों और संसाधनों का विकास हुआ है, पर विकास की कहानी क्या है? आप वस्तुएं खरीदने के लिए बाजार में जाएंगे तो आपको दुकानदार प्लास्टिक की थैलियों में सामग्री देगा। आज आवश्यकताएं इतनी बढ़ गई हैं कि एक थैली से काम नहीं चलता। व्यक्ति अनेक प्लास्टिक की थैलियों में सामान खरीद कर लाएगा। यदि आज कोई चाहे कि कांसा, पीतल और तांबे के बर्तन लाए, उन्हें काम में ले तो शायद लोग समझेंगे-यह किस युग में जी रहा है। आज इन बर्तनों का प्रचलन समाप्त होता जा रहा है। प्लास्टिक इतना छाया हुआ है कि जीवन की हर आवश्यकता के साथ प्लास्टिक जुड़ा हुआ है। बड़ा महत्त्व हो गया है प्लास्टिक का। सब जगह प्लास्टिक ही प्लास्टिक दिखाई देता है। समस्या यह है--जब भी किसी नई चीज का प्रचलन होता है, उसे वैज्ञानिक लोग बड़ा प्रोत्साहन देते हैं, महत्त्व देते हैं, उसका खूब प्रचार करते हैं और जब वह मानव-जीवन का अंग जैसा बन जाता है, तब उसके खतरे सामने आने लग जाते हैं। कुछ ब्रिटिश वैज्ञानिकों ने प्लास्टिक के संदर्भ में यह निष्कर्ष प्रस्तुत किया है-प्लास्टिक कैंसर का बहुत बड़ा कारण है। इसमें रखी चीजें खाने में बहुत खतरा है। जो प्लास्टिक रद्दी हो जाता है, दूसरी बार उससे पुन: प्लास्टिक बनाया जाता है, वह तो बहुत ही खतरनाक है। अब बड़ी विचित्र स्थिति पैदा हो गई, सांप छछंदर की सी स्थिति हो गई। प्लास्टिक को इतना पकड़ लिया कि उसे छोड़ा भी नहीं जा सकता और जब इतनी भयानक बीमारी का नाम सुनता है, काम में लेना भी मुश्किल होता है। आदमी करे क्या? इस उपभोक्तावादी संस्कृति ने न जाने कितनी ऐसी चीजों का निर्माण किया है, जहां आदमी सांप-छछंदर की स्थिति में फंस गया है। ऐसी अनगिन वस्तुएं आज बाजार में आकर्षक विज्ञापनों के साथ आ रही हैं, जिनकी मानव जीवन के लिए कोई अनिवार्य आवश्यकता नहीं है। अनावश्यक प्रवृत्तियां और पदार्थ बढ़ते ही चले जा रहे हैं। आवश्यकता पर रोक जैसी कोई बात नहीं रही है। नियंत्रक है ध्यान ध्यान जीवन में संयम लाता है। वह एक नियंत्रण है, ब्रेक है। अपनी आवश्यकता पर नियंत्रण, अपनी इच्छा पर नियंत्रण और अपने भोग पर नियंत्रण-इन तीनों दिशाओं में नियंत्रण की बात ध्यान से फलित होती है। इसलिए ध्यान हमारे जीवन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003158
Book TitleTab Hota Hai Dhyana ka Janma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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