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ध्यान और मस्तिष्कीय प्रशिक्षण
है। प्रेक्षाध्यान की समग्र पद्धति अनेकांत और सापेक्षवाद पर आधारित है। स्वाध्याय का भी मूल्य है, ध्यान का भी मूल्य है। दोनों का समन्वय और संतुलन साधे । हम पूरा जानें भी और ध्यान भी करें। विज्ञान को भी पहचानें
सन् १९७९ का प्रसंग है। दिल्ली में एक सेमिनार का आयोजन था। विषय था-न्यूरोलॉजी और प्रेक्षाध्यान। उसमें अनेक योगी और डॉक्टर भाग ले रहे थे। हमने प्रेक्षाध्यान की आधुनिक विज्ञान के संदर्भ में चर्चा की। सेमिनार सम्पन्न हुआ। कुछ योगी हमारे पास आए, बोले- मुनिजी ! आज आपने कहा-हमारा श्वास डायाफ्राम से नीचे नहीं जाता। नाभि तक नहीं पहुंचता। हम तो आज तक यही कहते आ रहे हैं-नाभि तक श्वास ले जाओ। आज आपने बहुत नई बात बता दी।' मैंने कहा-'आज मेडिकल साइंस ने इस विषय में इतनी खोजें की हैं कि उसके विपरीत कोई बात कही जाती है तो वह मखौल का विषय बन जाती है।' आज शरीर विज्ञान ने शरीर के एक-एक रहस्य को खोज लिया है। इस स्थिति में यह कहना सही कैसे हो सकता है कि हमारा श्वास नाभि तक जाएगा।' योगी-साधुओं ने इस बात को स्वीकार किया-विज्ञान के युग में केवल अध्यात्म की ही नहीं, विज्ञान की भी जानकारी आवश्यक है।
___ ध्यान और ज्ञान-दोनों सापेक्ष हैं। मस्तिष्कीय प्रशिक्षण के लिए हमें दोनों का सम्यक् उपयोग करना चाहिए। ज्ञान और ध्यान के द्वारा हमारा मस्तिष्क सम्यक प्रशिक्षित होता है तो हमें अपनी समस्याओं को सुलझाने का सूत्र मिल जाता है। जो व्यक्ति अपने जीवन की समस्याओं को सुलझा लेता है, वह दूसरों की समस्याओं को सुलझाने में भी सहयोगी और उपयोगी हो सकता है। इस दृष्टि से हम ध्यान का मूल्यांकन करें, मस्तिष्क को प्रशिक्षित करें, जिससे वह शांत और संतुलित रह सके । शांत और संतुलित मस्तिष्क स्वयं के लिए ही नहीं, दुनिया के लिए भी वरदान बन सकता है।
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