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तब होता है ध्यान का जन्म
दीर्घश्वास प्रक्षा क्या कर रहा हू में कायात्सग क्या कर रहा हूं? मैं अन्तर्यात्रा क्यों कर रहा हूं? इन सबका पूरा प्रशिक्षण और बोध होता है तो व्यक्ति नए प्रकाश और आलोक का अनुभव करता है। हिसार में एक सम्मेलन हो रहा था । विषय था योग का ॥ प्रेक्षाध्यान के दो प्रशिक्षकों ने भी उसमें भाग लिया। उन्होंने प्रेक्षाध्यान को विज्ञाना के संदर्भ में प्रस्तुत किया । उस सम्मेलन में भाग ले रहे बुद्धिजीवी विषय की वैज्ञानिक विवेचना को सुनकर विस्मित हो गए । उन्होंने कहा - आप इतनी बातें कैसो जानते हैं? ये बात आपको कहां से मिलीं? क्या आप वैज्ञानिक हैं? आप वैज्ञानिक नहीं है फिर भी इतनी बातें कैसे जानते हैं? उन्होंने बताया- प्रेक्षाध्यान का जो प्रशिक्षण चलता है, उसमें केवल अध्यात्म का ही नहीं, विज्ञान का भी पूरा सामावेश है। वस्तुतः यह अपेक्षित है। ध्यान के साथ शरीर विज्ञान, मनोविज्ञान, सामाजविज्ञान आदि विज्ञान की अनेक उपयोगी शाखाओं का प्रशिक्षण चलना चाहिए । यदि केवल ध्यान का प्रशिक्षण चले और शरीर के रहस्यों को न जानें तो ध्यान की सार्थकता क्या होगी? केवल ध्यान करें और यह न जानें कि शरीर के अवयवों का फक्शान क्या है तो ध्यान की उपयोगिता कहां होगी ? ध्यान करें और मनोविज्ञान के सूत्रों को न जानें तो भी उलझनें आएंगी। ध्यान के साथ इन सबका ज्ञान हो तो मार्ग आलोकमय बन जाएगा ।
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ज्ञान और ध्यान
ज्ञान और ध्यान दोनों का योग होना चाहिए। हम ऐसा नहीं सोचते कि ध्यान शिविर में केवल ध्यान ही चले, ज्ञान का उपक्रम न चले। यदि दिन भर ध्यान ही ध्यान चालेगा तो मस्तिष्क पर अतिरिक्त भार आएगा। वह हितकर नहीं है । मस्तिष्कीय कार्य बादलाना चाहिए। ध्यान के समय में ध्यान चले और शेष समय में ज्ञान भी चले । ज्ञान बहुत अनिवार्य है, आवश्यक है। एक बहुत प्राचीन किन्तु मार्मिक श्लोक है, जो जैन परम्परा में भी प्रचलित है और वैदिक परम्परा में भी ।
स्वाध्यायात् ध्यानमध्यास्तां, ध्यानात् स्वाध्यायमामनेत् । परमात्मा प्रकाशते ।।
ध्यानस्वाध्यायसंपत्त्या,
कहा गया- तुम ध्यान करो। जब यह अनुभव करो कि ध्यान करते-करते थक गाया हूं तो तुम ध्यान को छोड़ दो और स्वाध्याय में लग जाओ । स्वाध्याय करते-करते ऐसा लगे कि थक गया हूं तो स्वाध्याय को छोड़ दो, फिर ध्यान शुरू कर दो। स्वाध्याय और ध्यान- ये दोनों ही आत्मा को प्रकाशित करने वाले हैं।
हम एकांगी न बनें। यह न मानें - केवल ध्यान ही सब कुछ है अथवा केवल ज्ञाना ही सब कुछ है। ज्ञान और ध्यान दोनों का योग करें। यह नय-सापेक्ष दृष्टिकोण
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