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तब होता है ध्यान का जन्म
है, सक्रिय है, उसमें परिवर्तन आना शुरू हो जाएगा और जो अक्रोध का प्रकोष्ठ है, जो अक्रोध की प्रणाली है, वह अपना काम करने लग जाएगी ।
चिन्तन भी समाधान देता है
ध्यान एक प्रकार से मस्तिष्कीय प्रशिक्षण का प्रयोग है। इस संदर्भ में केवल अचिन्तन ध्यान का ही नहीं, चिन्तन ध्यान का भी बहुत महत्त्व है । एक ऐसा विकल्प आता है, एक ऐसा चिन्तन आता है कि जिससे मस्तिष्क की सारी क्रियाएं बदल जाती हैं । एक परिवर्तन घटित होता है, समस्या को समाधान मिल जाता है । चिन्तन व्यर्थ नहीं है । चिन्तन के द्वारा बड़ी-बड़ी समस्याओं का समाधान निकलता है । जो लोग ध्यान में नहीं गए हैं, उन्होंने चिन्तन के माध्यम से ही समस्याओं के समाधान खोजे हैं । वह भी समस्या के समाधान का एक प्रयोग है । हम उसे अस्वीकार कैसे करें ? ध्यान ही सब समस्याओं का एकमात्र समाधान नहीं है, किन्तु यह निश्चित है कि ध्यान से चिन्तन में शुद्धि और पवित्रता आती है । चिन्तन की विशुद्ध धारा व्यक्ति के चित्त को समाहित बना देती है I
पिता का अचानक देहावसान हो गया। दो पुत्र थे । पुत्रों ने पिता की सारी सम्पत्ति का बंटवारा कर लिया लेकिन एक सोने की अंगूठी शेष रह गई । बड़े भाई ने कहा- यह अंगूठी मैं लूंगा । छोटा भाई बोला- यह अंगूठी मैं लूंगा। दोनों अपने आग्रह पर अड़ गए। इस आग्रह ने विग्रह का रूप ले लिया। दोनों ने अपनी समस्या समझदार व्यक्ति के सामने रखी। उसने कहा- तुम दोनों किसी को मध्यस्थ बनाओ, उनके सामने अपनी समस्या रखो और वह जो निर्णय दे, उसे मान्य कर लो। इसके सिवाय समाधान का कोई विकल्प नहीं है। दोनों भाइयों ने एक स्वर में कहा- 'हम आपको ही मध्यस्थ स्वीकार करते हैं । आप जो निर्णय देंगे, उसे मान्य करेंगे।' उसने कहा- ' - 'तुम तीन-चार दिन के लिए यह अंगूठी मुझे दो । चार दिन बाद मैं अपना निर्णय सुना दूंगा।'
मध्यस्थको अंगूठी मिल गई। वह अंगूठी लेकर सीधा स्वर्णकार के पास गया। उसने स्वर्णकार से कहा - इस एक अंगूठी से एक समान दो अंगूठियां बना दो। दोनों का वजन इस अंगूठी के समान होना चाहिए । स्वर्णकार ने सोने में कुछ मिलाया और दो समान अंगूठियां बना दी ।
मध्यस्थ चौथे दिन दोनों अंगूठियां लेकर उनके घर पहुंचा। पहले बड़े भाई को उसने एकांत में बुलाया और कहा- देखो ! तुम थोड़ी उदारता बरतो, अंगूठी का मोह छोड़ दो । आखिर वह तुम्हारा छोटा भाई है। उसके पास यह अंगूठी जाएगी तो क्या फर्क पड़ेगा?' बड़ा भाई बोला- 'आप यह बात बिल्कुल न कहें। मैं बड़ा हूं इसलिए अंगूठी पर मेरा ही अधिकार होना चाहिए और मैं अपने अधिकार को छोड़ नहीं सकता ।' जह
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