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बाहर उजला भीतर मैला रोटियां मैं खाऊंगी। यदि छह रोटियां होती तो बराबर पांती हो जाती। एक रोटी के दो टुकड़े करना दोनों को मान्य नहीं था। चार और तीन का झगड़ा हो गया। काफी प्रयत्न किया गया, पर कोई निपटारा नहीं हुआ। आखिर दोनों ने एक उपाय खोजा-हम सो जाएं, मौन कर लें, जो पहले मौन तोड़ेगा, उसको तीन रोटी मिलेगी और जो मौन नहीं तोड़ेगा, उसको चार रोटियां मिलेंगी। अब मौन कौन तोड़े? पहले कोई बोलता नहीं है। दोनों सो गए। एक दिन बीता, दो दिन बीते, तीन दिन बीत गए। आस-पास के लोगों ने देखा-बात क्या है? कोई हलचल क्यों नहीं है? दोनों बिल्कुल खाट पर शांत पड़े थे। बूढ़े तो थे ही। तीन दिन का उपवास हो गया तो मुतवत् दिखाई देने लगे। लोगों ने देखा-दोनों निश्चेष्ट पड़े हैं। दोनों को आवाज दी, पर कोई बोलता नहीं है। दोनों ने सोचा-जो बोलेगा, उसकी एक रोटी चली जाएगी। दोनों में कोई नहीं बोला। दोनों सोए रहे। लोगों ने समझा-दोनों मर गए। दोनों को हाथों से उठाया, अर्थी बनाई, श्मशान घाट ले गए। चिता बनाई, दोनों को उस पर लिटा दिया। योग ऐसा मिला-उस समय सात लोग पास खड़े थे। बुढ़िया बोली-चलो, कोई बात नहीं, मैं तीन खा लूंगी, तुम चार खा लेना। वे सात रोटियों की बात कर रहे थे। सात का विचित्र योग मिला। लोगों ने सोचा-हम भी सात हैं। भागो यहां से। सातों गांव की ओर भागे। जैसे वे लोग भागे, पीछे-पीछे वे दोनों भागे। बड़ी विचित्र बात हो गई। लोगों ने सोचा-दोनों भूत हो गए हैं और हमारा पीछा कर रहे हैं, गांव में आ रहे हैं। भागते-भागते वे लोग राजा के पास पहुंचे। राजा को सूचित किया-महाराज ! आज एक बूढ़ा-बुढ़िया--दोनों भूत बन गए हैं और दौड़े आ रहे हैं। लगता है-गांव को खा जाएंगे। यह सुनकर राजा भी इतना डर गया कि अपना महल खाली करके भाग गया। पूरा गांव खाली हो गया।
भूत आयेगा तो गांव खाली हो जाएगा। मुर्दा आ जाएगा तो सिनेमाघर खाली हो जाएगा, वहां रहेगा कौन? जब तक शरीर में चेतना है, आत्मा है, प्राण है, तब तक व्यक्ति जानता है। हमने जानने वाले की उपेक्षा कर दी और जो जानने की बात है, ज्ञेय है, उस पर सारा ध्यान केन्द्रित कर दिया। दो शब्द हैं-ज्ञाता और ज्ञेय । ज्ञाता है जानने वाला, ज्ञेय है पदार्थ, जो जाना जाता है। हमारी दृष्टि ज्ञेय पर अटक गई। ज्ञाता को भुला दिया। आज की शिक्षा का यह चित्र है-ज्ञाता की उपेक्षा हो रही है, आंतरिक प्रकृति की उपेक्षा हो रही है और बाह्य प्रकृति की अपेक्षा इतनी की जा रही है, जिसकी कोई सीमा नहीं है। यह विचित्र और दयनीय स्थिति है।
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