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________________ बाहर उजला भीतर मैला ध्यान एक शिक्षा है। वह मस्तिष्क को शिक्षित बनाती है। विद्यालय में शिक्षा मिलती है। छात्र-छात्राएं पढ़ते हैं। पढ़ाई का परिणाम यह होता है-बाहरी कार्यक्षमता बढ़ जाती है, कुशलता बढ़ जाती है किन्तु विद्यार्थी भीतर वैसा का वैसा बना रहता है। __ शिक्षा ने सदा बाह्य जगत पर ध्यान केन्द्रित किया है। जगत में आदमी कैसे जी सके? उसकी क्षमता कैसे बढ़े? किस प्रकार वह बौद्धिकता के साथ अपने जीवन की यात्रा को संचालित कर सके? अन्तर्जगत अछूता रह गया। बाहर में कुछ है, पदार्थ है, रोटी, कपड़ा और मकान है। साज-सज्जा और सौंदर्य की सामग्री है। आदमी देखते-देखते अघाता नहीं है। जब टी.वी. देखने बैठता है तो देखता ही रहता है। सिनेमा जाता है तो देखता ही रहता है। कभी नाटक देखता है, कभी बाजार देखता है, कभी सजावट को देखता है और कभी खेलों को देखता है। फुटबाल, क्रिकेट आदि न जाने कितने मैच होते हैं, सबको देखता है। इन्द्रियां कभी देखते-देखते थकती नहीं, तृप्त नहीं होतीं। हमने मान लिया-जो कुछ है, वह बाहर है। यह एक अज्ञान का पर्दा आ गया। भीतर की ओर से आंखें मुंद गईं। ऐसा मान लिया कि भीतर कुछ है ही नहीं। सचाई यह है कि भीतर का जगत बाहर के जगत से बहुत बड़ा है। प्रश्न यह है-जानता कौन है? अगर जानने वाला नहीं रहे तो बाहर का जगत कुछ भी नहीं है। प्राण चला गया, मुर्दा हो गया। उस मुर्दे को कोई टी.वी. दिखाना चाहे, सिनेमा दिखाना चाहे तो क्या वह जानेगा? सौ-दौ सौ आदमी सिनेमा घर में सिनेमा देख रहे हैं। एक मुर्दे को वहां इसलिए बिठा दिया जाए कि वह भी सिनेमा देख ले तो क्या होगा? सारा सिनेमा घर खाली हो जाएगा, वहां कोई नहीं रहेगा। गांव खाली हो गया बूढ़ा और बुढ़िया-दोनों में झगड़ा हो गया। बात बहुत छोटी थी। बुढ़िया ने सात रोटियां बनाईं। बूढा कहता है-चार रोटियां मैं खाऊंगा और बुढिया कहती है-चार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003158
Book TitleTab Hota Hai Dhyana ka Janma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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