SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 103
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तब होता है ध्यान का जन्म केवल कल्पना न करें हम इस कथा का सार समझें। ज्योतिषी, वैद्य, तर्कशास्त्री और शब्दशास्त्री चारों मिले। चारों ने रसोई बनाने की कल्पना की। सामग्री जुटाई पर चित्र नहीं बना सके। अगर मानसिक चित्र स्पष्ट होता तो रसोई बन जाती। कल्पना तो थी पर मानसिक चित्र स्पष्ट नहीं था। मानसिक चित्र के अभाव में कल्पना यथार्थ तक नहीं पहुंच सकती। केवल कल्पना से काम नहीं चलता। कल्पना को यथार्थ तक ले जाने के लिए एक मानसिक चित्र का निर्माण करना होता है। जब मानसिक चित्र बन जाए तब फिर ध्यान का प्रसंग आता है। तीसरे चरण में ध्यान की उपयोगिता है। जो चित्र बनाया है, उस पर जितने एकाग्र हो सकेंगे, उसी गति से यथार्थ तक कल्पना पहुंच जाएगी। उस पर एकाग्र नहीं हुए, एकाग्रता नहीं सधी तो मानसिक चित्र बन जाने पर भी कल्पना यथार्थ नहीं बनेगी। ऐसे लोगों को देखा है, सुना है, पढ़ा है, बहुत अच्छे कल्पनाकार थे, बहुत अच्छे मानसिक चित्रकार भी थे किन्तु एकाग्र नहीं थे। आज एक ग्रन्थ को पढ़ना शुरू किया, सौ-दौ सौ श्लोक पढ़े। वह पूरा नहीं हुआ, उससे पहले ही दूसरा ग्रन्थ पढ़ना शुरू कर दिया। उसके दस-बीस पन्ने पलटे फिर तीसरा ग्रन्थ पढ़ना शुरू कर दिया। ग्रन्थ एक भी पूरा नहीं हुआ। एकाग्रता के अभाव में यह स्थिति बनती है। एक वैज्ञानिक ने अपने जीवन में विज्ञान पर नौ सौ निबंध लिखे किन्तु पूरा एक भी नहीं किया। कहा जाता है-यदि वह दो-चार निबंध भी पूरा कर देता तो दुनिया का महान् वैज्ञानिक बन जाता। ध्यान है सफलता का सूत्र जब तक एक विषय पर हम टिकना नहीं जानते, एकाग्र होना नहीं जानते, तब तक कल्पना यथार्थ तक नहीं पहुंच सकती। यह निश्चित मानें-व्यवहार का प्रश्न हो या अध्यात्म का प्रश्न-ध्यान दोनों में आवश्यक है। व्यवहार में सफलता के लिए भी ध्यान जरूरी है। कल्पना को यथार्थ तक ले जाने के लिए एकाग्रता अत्यन्त अनिवार्य है, निर्विकल्प ध्यान की बात छोड़ दें किन्तु जो एकाग्रता का ध्यान है, वह व्यावहारिक और आध्यात्मिक दोनों क्षेत्रों में सफलता के लिए जरूरी है। कुछ व्यक्ति कहते हैं--अमुक धंधा शुरू किया, पर सफल नहीं हो रहा हूं। मैंने उससे पूछा-तुम एकाग्र होना जानते हो या नहीं? यदि एकाग्र होना नहीं जानते हो तो सफल नहीं हो सकते। आज एक व्यवसाय शुरू किया। हो सकता है-उसमें उतार-चढ़ाव आए, सफलता न मिले। यदि उसमें एकाग्रता बन जाए तो संभव है कि सफलता भी मिल जाए। एक व्यवसायी ने कहा-हम लोग एक व्यवसाय कर रहे थे। परिवार के लोगों ने कहा-भाई! यह काम अच्छा नहीं है। लाभ नहीं हो रहा है। उन लोगों ने उस व्यवसाय को अस्त-व्यस्त कर दिया। ऐसा योग था-यदि दो महीने वही काम चलता तो एक साथ करोड़ो का लाभ होने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003158
Book TitleTab Hota Hai Dhyana ka Janma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy