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व्यक्तित्व निर्माण और ध्यान
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होती है। करेला देखा, सोचा - करेला तो बहुत पित्तवर्द्धक होता है, बहुत उष्ण होता है एक - एक सब्जी को देखता गया और वैद्य - शास्त्र के अनुसार विश्लेषण करता गया । कोई भी शाक उसे उपयुक्त प्रतीत नहीं हुआ। वह खाली झोला लेकर लौटने लगा । रास्ते में सोचा-खाली झोला लेकर जाऊंगा तो कैसे काम होगा। नीम का वृक्ष दिखाई दिया। नीम को देखते ही उसे आयुर्वेद का वाक्य याद आ गया - सर्वरोगहरो निम्ब: । सब रोगों को मिटाने वाला है नीम । उसने नीम की पत्तियां तोड़ीं, झोला पूरा भर लिया ।
तर्कशास्त्री घी से भरा बर्तन ले आया । आते-आते मन में तर्क पैदा हो गया- मैं जो घी ले जा रहा हूं उसका आधार पात्र है या पात्र का आधार घी है - घृताधारं पात्रं पात्राधारं घृतम् । मन में तर्क पैदा हो गया। जब तर्क उभर आता है तब आदमी के वश की बात नहीं रहती। वह यथार्थ को भूल गया और तर्क में उलझ गया । इतना उलझ गया कि सचाई को जानने के लिए पात्र को उल्टा कर दिया। घी नीचे गिर गया, पात्र खाली हो गया ।
वैद्य और तर्कशास्त्री दोनों आए । वैद्य को पूछा- क्यों शाक नहीं लाये? वैद्य ने कहा- मैं शाक कैसे लाता, कोई भी स्वास्थ्यप्रद सब्जी मिली ही नहीं । केवल नीम ही ऐसा था, जो सब रोग का हरण करने वाला है। उससे झोला भरा हुआ है ।
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तर्कशास्त्री से पूछा-घी नहीं लाए ? तर्कशास्त्री ने कहा- मैं घी लाया तो था पर वह बीच में रह गया । मैं क्या करूं? मुझे तो यह परीक्षण करना था कि आधार कौन है ? पात्र का आधार घी है या घी का आधार पात्र है ? जब वैज्ञानिक परीक्षण होता है तब बहुत सारी चीजें नष्ट हो जाती हैं । परीक्षण में तो यह सब चलता है ।
ज्योतिषी, वैद्य और तर्कशास्त्री तीनों एक ओर बैठ गए। शब्दशास्त्री ने कहा - ' और कुछ तो है नहीं, अपने पास चावल और दाल है। मिट्टी की हांडी में खिचड़ी पकाकर खा लेंगे।' उसने चूल्हा जलाया, मिट्टी की हांडी में खिचड़ी चढ़ा दी। खिचड़ी पकने लगी। जैसे-जैसे पानी गर्म हुआ, खिचड़ी उबलने लगी, खदखद की आवाज होने लगी, शब्दशास्त्री इसको कैसे सहन करता । वह बोला- “ अशुद्धं न वक्तव्यं, अशुद्धं न वक्तव्यं ।” तुम तो बिलकुल अशुद्ध बोल रही हो, अशुद्ध नहीं बोलना चाहिए। एक शब्दशास्त्री अशुद्ध को कैसे सहन कर सकता है ? खिचड़ी की खदखद चलती रही शब्दशास्त्री ने सोचा-क्या करना चाहिए ? जो गलत बोले, उसे एक लाठी जमा देन चाहिए। कहा गया है - जो खण्डिकाचार्य होता है, पाठ और घोष की शुद्धि कराने वाल आचार्य होता है, वह अशुद्ध बोलने वाले छात्र को प्रताड़ित करे । शब्दशास्त्री ने तत्काल पास में पड़ी लाठी को उठाया और हांडी को पीट दिया। हांडी फूट गई। चावल-दाल बिखर गए, मिट्टी में मिल गए ।
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