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नवतत्त्व : आधुनिक संदर्भ सारी मूर्छाएं शरीर से ही पैदा होती हैं। जैसे-जैसे अन्यत्व अनुप्रेक्षा पुष्ट बनती है शरीर की प्रतिबद्धता कम होती चली जाती है, संवर-सिद्धि का मार्ग प्रशस्त बन जाता
संकल्प-सिद्धि का परिणाम
कहा जाता है पुजारी की साधना नहीं होगी तो मंदिर का दरवाजा कैसे खुलेगा? यह उदाहरण को भाषा है । जब तक गुप्तियों को आराधना नहीं होगी, तब तक संवर की आराधना कैसे होगी ? केवल उच्चारण मात्र से कुछ हो जाए, यह सम्भव नहीं है । साधना के बिना सिद्धि नहीं होती और सिद्धि के बिना कोई वांछित लाभ नहीं मिल पाता । जब साधना सधती है तब 'त्याग है' --- इस कथन मात्र से दरवाजा बन्द हो जाएगा। संकल्प सिद्धि होने पर चेतना की ऐसी स्थिति बन जाती है कि संकल्प लेते ही आश्रव का दरवाजा बन्द हो जाता है। जितनी समस्याएं, जितने क्लेश हमारे भीतर पैदा होते हैं, हम उन सबके दरवाजे बन्द कर सकते हैं। कल्याण के पथ
दरवाजे को बन्द करने का उपाय है-संवर को सिद्धि । साधना के द्वारा उस चाबी को घुमाना है जो दरवाजे खोले नहीं, बन्द कर दे । उस चाबी को घुमाने से पहले साधनों का अभ्यास और उसकी सिद्धि जरूरी है। अभ्याससाध्य है संवर की सिद्धि । यदि संवर सिद्ध होगा तो हम अपने आपको बहुत सारे कष्टों से बचा लेंगे। इसके सिवाय कोई उपाय हो नहीं है। यही उपाय है दुःख मुक्ति का, दरवाजे को बन्द करने का । हम इस उपाय के प्रति सजग बनें, कल्याण का पथ उपलब्थ हो जाएगा।
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