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क्या दरवाजा बंद है.? यह सचाई है-अपना किया हुआ स्वयं मुझे ही भोगना है। कर्म करने में भी अकेला है व्यक्ति और उसका फल भोगने में भी अकेला है व्यक्ति । अपना किया हुआ कर्म मुझे ही भोगना होगा--यह भावना जितनी प्रबल बनेगी, यह संस्कार जितनी पुष्ट होगा, उतना ही संवर सिद्ध होगा।
एकत्व की अनुप्रेक्षा से आसक्ति की तीव्रता टूटती है, स्वजन के प्रति होने वाला स्नेह एवं अनुराग बन्द होता है
और परजन के प्रति जो द्वेष है, वह भी बन्द हो जाता है। सबसे बड़ी समस्या है-परजन के प्रति विराग और स्वजन के प्रति अनुराग । भ्रष्टाचार के पीछे सबसे बड़ा कारण हैस्वजन के प्रति अनुराग की भावना और परजन के प्रति विराग की भावना। ___व्यक्ति सोचता है-मेरा परिवार सुखी रहे, मेरे रिश्तेदार सुखी रहें, समृद्ध बनें, मेरे आदमी निरंतर आगे बढ़ें। यह भावना है स्वजन के प्रति अनुराग की । इसके कारण ही व्यक्ति दूसरों को सताता है, दूसरों का शोषण करता है। एकत्व की अनुभूति से स्वजन के प्रति अनुराग भी प्रतिबन्धित होता है और परजन के प्रति अनुराग भी प्रतिबंधित हो जाता है। अन्यत्व अनुप्रेक्षा _ अनुप्रेक्षा का एक प्रकार है-अन्यत्व अनुप्रेक्षा । शरीर भिन्न है और आत्मा भिन्न है-यह है अन्यत्व अनुप्रेक्षा। यह अनुप्रेक्षा जितनी आगे बढ़ती है, व्यक्ति उतना ही शरीर की प्रतिबद्धता से मुक्त होता है। जब तक शरीर का ममत्व रहता है तब तक संवर की साधना सिद्धि तक नहीं पहुंच पाती । शरीर को प्रतिबद्धता से मुक्त होने का एक उपाय है-- कायगुप्ति और दूसरा उपाय है - शरीर के प्रति निर्मोही होना ।
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