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बोया वीज बबूल का, आम कहां से होय ?
२७ प्रतिक्रिया का जीवन जीता है, तब तक उसे उसका परिणाम भुगतना होता है । इसी आधार पर हम आचरण की मर्यादाएं निर्धारित कर सकते हैं। यदि प्रतिष्ठा, सुख, स्वास्थ्य और दीर्घ आयुष्य की आकांक्षा है तो जीवन का व्यवहार उसके अनुकूल होना चाहिए, प्रतिकूल नहीं । एक आदमी में आत्मप्रशंसा और पर-निन्दा करने की आदत है। नीतिशास्त्र के अनुसार यह महान् दोष माना जाता है। इसका परिणाम है-. अप्रतिष्ठा का अर्जन । कर्मशास्त्र की भाषा में इसका परिणाम है-नीचगोत्र का अर्जन । जब उसका विपाक आता है, व्यक्ति को सम्मान नहीं मिलता । इसका कारण है- व्यक्ति ने आत्मप्रशंसा और पर-निन्दा करते-करते कुछ ऐसा अर्जन किया है, जिसका कुछ ऐसा परिपाक आया है कि सब कुछ मिलने पर भी प्रतिष्ठा उसके भाग्य में नहीं होती। नीच गोत्र का अर्जन : कारण
कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं, जो दूसरों के गुणों का आच्छादन करते हैं, उन्हें छिपाना चाहते हैं और अवगुणों को खुला बांटना चाहते हैं । ऐसा करने वाला व्यक्ति भी नीचगोत्र कर्म का अर्जन करता है, अप्रतिष्ठा का बीज बोता है । व्यक्ति बीज बोता है- अप्रतिष्ठा का और चाहता है - प्रतिष्ठा, यह कैसे संभव है ? राजस्थानी कहावत है- बोया बीज बबूला का, आम कहां से होय ? बबूल का बीज बोने से आम कैसे पैदा होगा? जब सुख और प्रतिष्ठा का बीज ही नहीं बोया है तो वह कहां से आएगा? आदमी की आदत है दूसरों की अच्छाइयों को ढकना और बुराइयों को प्रकाशित करना। इसका परिणाम है-नीचगोत्र का अर्जन या अप्रतिष्ठा की उपलब्धि । इसलिए वह प्रतिष्ठा चाहते हुए भी अप्रतिष्ठा को पा लेता है।
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