________________
नवतत्त्व : आधुनिक संदर्भ है ? उसे पोषण कौन दे रहा है ? वह कैसे हमारे व्यक्तित्व को प्रभावित कर रहा है ? इस प्रक्रिया को समझने के लिए पुण्य, पाप, आश्रव और बंध-इन चार तत्त्वों को समझना होगा। जब तक यह तत्त्व-चतुष्क समझ में नहीं आएगा तब तक न उलझनों का अन्त होगा, न मानसिक समस्याओं और दुःखों का अन्त होगा। प्रश्न स्वतंत्रता का
हम अपने रूप में नहीं रह सकते क्योंकि हमारा स्रोत खुला हुआ है। जब तक कर्म-शरीर की यह क्रिया बंद नहीं होगी, अचेतन प्रकंपित नहीं होगा तब तक यह चक्र निरन्तर चलता रहेगा । आश्रव होता है और वह बहुत सामग्री भीतर भेज देता है। जो शरीर भरेगा, वह बाहर आएगा और जो बाहर आएगा वह प्रभावित करेगा। इस आधार पर हमारे चरित्र और व्यवहार की व्याख्या हो सकती है। प्रत्येक व्यक्ति सोचता है -- मैं स्वतंत्र हूं। स्वतंत्रता का अहंकार भी होता है। पर क्या हम सही अर्थ में स्वतंत्र हैं ? स्वतंत्र नहीं हैं, यह नहीं कहा जा सकता। यदि व्यक्ति स्वतंत्र नहीं है तो जीवन की व्याख्या करने की भी कोई आवश्यकता नहीं है। वह कोरी कठपुतली बन जाएगा। किन्तु आदमी कोरी कठपुतली नहीं है । वह स्वतंत्र भी है। संचालक कौन है ?
__ जीवन में दोनों प्रकार के व्यवहार मिलते हैं । व्यक्ति कहीं-कहीं अपनी उदात्त चेतना के द्वारा ऐसा स्वतंत्र व्यवहार करता है कि कोई आड़े नहीं आता । कहीं-कहीं वह कठपुतली जैसा व्यवहार करता है, जैसे कोई दूसरा उसे नचा रहा है। प्रश्न होता है-उसे कौन नचा रहा है ? कौन चला रहा है ?
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org