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नवतत्त्व : आधुनिक संदर्भ जीव दुःख को पैदा कर रहा है । जीव की पहली समस्या यह है कि वह पुद्गल के साथ जुड़ा हुआ है और पुद्गल के योग ने एक समस्या पैदा कर दी, वह है चंचलता। दुःख का कारण है
-चंचलता । मन, वाणी और शरीर-तीनों चंचल बने हुए हैं। महर्षि पंतजलि ने लिखा-दुःख, दौर्मनस्य आदि चंचलता से उत्पन्न समस्याएं हैं । चंचलता नहीं है तो दुःख नहीं होगा। हम समाधि में बैठ जाएं, एकाग्र हो जाएं, कोई दुःख नहीं होगा, दौर्मनस्य नहीं होगा, प्रकंपन नहीं होगा, श्वास-निःश्वास की अव्यवस्था नहीं होगी । ये सभी समस्याएं चंचलता में पैदा होतो हैं । समस्या है चंचलता
हम जैन दर्शन को दृष्टि से विचार करें। जैन दर्शन के अनुसार चंचलता के साथ चार बड़ी समस्याएं पैदा होती हैंमिथ्या दृष्टिकोण, आकांक्षा, प्रमाद और आवेश । अग्नि और वायु का संबंध है । यदि आक्सीजन नहीं मिलेगी तो आग बुझ जाएगी । दृष्टिकोण मिथ्या है, आकांक्षा है, आवेश है, प्रमाद
और उत्तेजना भी है किन्तु जब तक चंचलता का योग नहीं मिलता, यह प्राणवायु नहीं मिलता तब तक वे उद्दीप्त नहीं होते । योग के द्वारा चंचलता के द्वारा इन सबका उद्दीपन हो रहा है। हमारे भीतर जितनी भी समस्याएं हैं, उन्हें प्राण दे रही है हमारी चंचलता। कायोत्सर्ग का अर्थ
ध्यान करने वाले व्यक्ति को सबसे पहले कायोत्सर्ग के बारे में समझाया जाता है। कायगुप्ति होगी, काया को स्थिरता सधेगी, चंचलता अपने आप कम हो जाएगी। दूसरा सूत्र है- वाक् गुप्ति, स्वरयंत्र का शिथिलीकरण, कंठ का
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