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यह दुःख कहां से आ रहा है स्रोत है योग
___ एक प्रश्न है-जोव और पुद्गल के बीच जो संबंध है, वह चल कैसे रहा है ? उसका एक स्रोत है । जो शरीर आत्मा के साथ जुड़ा हुआ है, वह निरन्तर अपनी सुरक्षा कर रहा है । उसने ऐसे स्रोत बना लिए हैं, जिनसे निरन्तर रस प्राप्त हो रहा है। उसे पोषण देने वाला, चिरजीवी बनाने वाला जो तत्त्व है, उसका नाम है -आश्रव । वह निरन्तर पुद्गलों को खींच रहा है, अपने आपको पुष्ट बना रहा है. कभी क्षीण नहीं होने दे रहा है। शरीर ने अपने साथ दो तत्त्व और प्राप्त कर लिए हैं--वाणी और मन । इन तीनों का योग बन गया, जो निरन्तर उसका पोषण कर रहे हैं । इसे पारिभाषिक शब्दावली में कहा गया-कायवाङ मन:व्यापारो योगः --काया, वाणी और मन का जो व्यापार है, जो प्रवृत्ति है, उसका नाम है-योग।
महर्षि पतंजलि ने भी योग शब्द का प्रयोग किया है। जैन दर्शन में भी वह प्रयुक्त हुआ है। इसके अर्थ में सादृश्यता भी है, असादृश्यता भी है । योग का एक अर्थ है - जुड़ना और जोड़ना । योग का दूसरा अर्थ है-समाधि या एकाग्रता । टिकाने वाला बिन्दु
प्रश्न है -हमारा संबंध कसे बना हुआ है ? हम कैसे जुड़े हुए हैं ? काया, वाणी और मन-इन तीनों की प्रवृत्ति चल रही है । ये तीनों पुद्गलों को बाहर से खींचते हैं और जीव को पुद्गलों के साथ जोड़ते हैं । योग आश्रव है। दीपक जल रहा है, बाती निरन्तर तैल को खींच रही है। हमारी प्राणधारा भी पुद्गलों के आधार पर निरन्तर चलती जा रही है। इसी आधार पर पुद्गलों की वर्गणाएं बना दी गईं।
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