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प्रकाशिका टीका-सप्तमवक्षस्कारः रु. ३४ जम्बूद्वीपतिनामकरणकारणनिरूपणम् ५५ पुष्पैः सर्वदैव शोभमानाः 'जाव पिंडिममंजरीवडेंसगधरा' याक्त् पिण्डिममञ्जर्यवतंसकधराः यावत्पदात् 'णिचं माइया गिच्चं लवइया णिच्चं थवइया जाव णिच्चं कुसुमिय माइय लवइय थवइय गुलइय गोच्छइयमलिय जुवलिय विणमिय सुविभत्त' एतेषां ग्रहणं भवति, उक्तवर्णक विशिष्टाः जम्बूवृक्षाः, 'सिरिए अईव २ उक्सोभेमाणा चिटुंति' श्रिया-शोभया वनलक्ष्म्या वा अतीव-अतिशयेन उपशोभमानाः फलपुष्पादिभिर्विलसन्तस्तिष्ठन्ति, इदं च सर्वदा कुसुमितत्वादिकं विशेषणं जम्बूवृक्षाणा मुत्तर कुरुक्षेत्रापेक्षया ज्ञादव्यम् अन्यथा जम्बूवृक्षाणामाषाढमासे एव पुष्पफलादिमत्वेन नित्यमिति विशेषणानां प्रत्यक्षबाधप्रसंगात् एतावता जम्बूमिया' सर्वदा पुष्पों से भरे हुए रहते हैं क्यों कि यहाँ जम्बृवृक्षा की ही प्रधानता कही गई है दूसरे वृक्षों की नहीं उनकी तो गौणता ही जाननी चाहिये अन्यथा यदि अन्यवृक्षों के सद्भाव को लेकर इस द्वीप में जम्बूद्वीप पद की प्रवृत्ति का निमित्त माना जावे तो यह कथन असंगत ही हो जावेगा। 'जाव पिडिममंजरिघडे सगधरा सिरीए अईव• उचसोभेमाणा चिटुंति'यहां यावत्पद से "णिचं माझ्या, णिचं लवइया,णिच्चं थवइया, जाव णिच्चं कुसुमियमाइय लवह थवइय गुलइय गोच्छइय मलिय जुबलिय विणमिय सुविभत्त' इस पाठ का संग्रह हुआ है-इन सब पूर्वोक्त पदों का व्याख्यान हम पहिले वनखण्ड के वर्णन में कर चुके हैं। अतः घहीं से इसे देखलेना चाहिये इस वर्णन से विशिष्ट जम्बूवृक्ष शोभा से अथवा वनलक्ष्मी से अत्यन्त शोभित होते रहते हैं यहां जो सर्वदा कुसुमितत्वादिक विशेषण जम्बूवृक्षों के वर्णन में दिये गये हैं वे उत्तर कुरु क्षेत्र गत जम्बूवृक्षों की अपेक्षा से ही जानना चाहिये, क्यों कि इतरक्षेत्र गत जम्बूवृक्ष आषाढ मास में ही पुष्पफलादि वाले होते हैं अतः नित्य आदि विशेषणों में प्रत्यक्ष बाधा का
यूवृक्ष 'णिच्चं कुसुमिया' सहा Youथी हायस रहेछ ४२६५ महीयानવૃક્ષની જ વિશેષતા કહેવામાં આવી છે-બીજાં વૃક્ષની નહીં તેમની તે ગૌણતા જ જાણવી અન્યથા જે બીજા વૃક્ષના સદુભાવને લઈને આ દ્વીપમાં જમ્બુદ્વીપતા પદની પ્રવૃત્તિનું निमित्त मानवामां आवे तो ॥ ४थन मसात सामित थी. 'जाव पिंडिम मंजरिवडे सगधरा सिरीए अईव २ उबसोभेमाणा चिटुंति' मही' य.१५४था ‘णिच्चं माइया, णिच्चं लवइया, णिच्चं थवइया, जाव णिच्चं कुसुमिय माइय लवड्य थवइय गुलइय गोच्छइय मलि यजुवलिय विणपिय सुविभत्त' 2 ना सब थये। छे. मा संघका पूर्वात पहान વ્યાખ્યાન અમે પ્રથમ વખણ્ડના વર્ણનમાં કરી ગયા છીએ આથી તેમાંથી જ આ બધું જોઈ લેવા ભલામણ છે. આ વર્ણકથી વિશિષ્ટ જબૂવૃક્ષ શેભાથી અથવા વનલહમીથી અત્યન્ત શોભિત થતાં રહે છે. અત્રે જે સર્વદા કુસુમિતત્વાદિક વિશેષણ જમ્બુવના વર્ણનમાં આપવામાં આવ્યા છે. તેઓ ઉત્તરકુર ક્ષેત્રગત જંબૂવૃક્ષની અપેક્ષાથી સમજવું કેમકે ઈતર ક્ષેત્રગત જંબૂવૃક્ષ અષાઢમાસમાં જ પુષફળાદિવાળા હોય છે આથી નિત્ય
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