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________________ प्रेमाधिका टीका-सप्तमवक्षस्कारः सू. ३२ चन्द्रसूर्यादीनामल्पबहुस्वनिरूपणम् ५ सम्प्रति-जघन्योत्कर्षाभ्यां जम्बूद्वीपे चक्रवर्तिनः संख्यां ज्ञातुं प्रश्नयनाह-जंबुद्दीवेणे भंते' इत्यादि, 'जंबुद्दीवेणं भंते ! दीवे' जम्बूद्वीपे खलु भदन्त ! द्वीपे सर्वद्वीपमध्य जम्बू द्वीपे इत्यर्थः 'केवइया' कियन्त:-कियत्संख्यकाः 'जहणपए वा उक्कोसपए वा' जघन्यपदेंसर्वस्तोके स्थाने उत्कृष्टे परे-सर्वोत्कृष्टस्थाने विचार्यमाणे 'चक्कवट्टी सम्बग्गेणं पत्रका' चक्रवर्तिनः सर्वाग्रेण-सर्वसङ्कलनया प्रज्ञप्ता:-कथिता इतिप्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'जहण्णपए चत्तारि' जवन्यपदे चखार श्चक्रवर्तिनः कथिता, तथाहिजम्बूद्वीपस्य पूर्वविदेहक्षेत्रे शीतामहोनद्याः दक्षिणोत्तरभागद्वये एकैकस्य चक्रवत्तिनः सद्भावात् एवमपरविदेहक्षेत्रेपि शीतोदकाया महानद्या दक्षिणोत्तरभागे द्वौ चक्रवर्तिनौ, तदेवं सर्वसंकलनया जघन्यपदे चत्वार श्चक्रवत्तिनो भवन्ति, 'उकोसपए तीसं चकवट्टी सम्बग्गेण पमत्ता' उत्कृष्टपदे त्रिंशचक्रवर्तिनः सर्वाग्रेण प्रज्ञप्ताः, कथमेवं भवति चेदत्रोच्यते-द्वात्रिंश एक २ तीर्थंकर के सद्भाव से २ दो तीर्थकर होते हैं इस प्रकार से ३४ तीर्थंकरों का होना कहा गया है। यह कथन विहरमाण तीर्थंकरो की अपेक्षा से कहा गया जानना चाहिये, जन्म की अपेक्षा से कहा गया नहीं जानना चाहिये, क्यों कि जन्म की अपेक्षा से ३४ तीर्थकर होते नहीं कहे गये हैं-कारण कि ऐसा होना असंभव है। 'जंबुद्दीवे गं भंते ! दीवे केवइया जहण्णपए वा उक्कोसपए वा चकवट्टी सव्वग्गेणं पन्नसा' हे भदन्त ! इस जंबुद्धीप नामके द्वीप में जघन्य रूप से कितने चक्रवर्ती रहते हैं और उत्कृष्ट रूप से कितने चक्रवर्ती रहते हैं। इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं 'गोयमा! जहण्णपए चत्तारि' हे गौतम! कम से कम चार रहते हैं-जम्बू द्वीप के पूर्व विदेह क्षेत्र में शीता महानदी के दक्षिण उत्तर भाग व्य में एक २ चक्रवर्ती का सद्भाव रहता है तथा शीतोदा महानदी के दक्षिण उत्तर भागद्य में एक २ चक्रवर्ती का सद्भाव रहता है-इस तरह जम्बूद्वीप में कम से कम ४ चार चक्रवर्ती होते कहे गये हैं और उस्कृष्ट पद में तीस चक्रહોય છે. આ પ્રમાણે ૩૪ તીર્થકરે થવાનું કહેવામાં આવ્યું છે. આ કથન વિચરમાન તીર્થકરોની અપેક્ષાથી કહેવામાં આવ્યાનું જાણવું. જન્મની અપેક્ષાથી કહેવામાં આવ્યું છે. તેમ જાણવાનું નથી કારણ કે જન્મની અપેક્ષાથી ૩૪ તીર્થકર હેવાનું કહેવામાં આવ્યું नथी- ४।२१ ये प्रभाले २ १२४य छे. 'जंबुद्दीवेणं भंते ! दीवे केवइया जहण्णपएका उक्कोसपए वा चकवट्टी सव्वग्गेणं पन्नत्ता' महन्त ! 41 दी५ नामना दीपमi AR રૂપથી કેટલા ચક્રવતી રહે છે અને ઉત્કૃષ્ટ રૂપથી કેટલાં ચક્રવર્તી રહે છે? આના. rai प्रभु ४ -'गोयमा ! जहण्णपए चत्तारि' गौतम ! छमा छ। यार છે જમ્બુદ્વીપના પૂર્વ વિદેહક્ષેત્રમાં શીતા મહાનદીના દક્ષિણ ઉત્તર ભાગ કયમાં ૧-૧૪ વતીને સદૂભાવ રહે છે તથા શીતાદા મહાનદીના દક્ષિણ ઉત્તર ભાગદ્વયમાં ૧-૧ ચક્રવતીને અભાવ રહે છે. આ રીતે બુદ્વીપમાં ઓછામાં ઓછા ૪ કવર્તી હોવાનું માં Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003156
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages562
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size17 MB
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