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________________ प्रकाशिका टीका-सप्तमवक्षस्कारः सू. २९ चन्द्रसूर्याणां विमानवाहकदेवसंख्यानि० ४८१ दितानाम्, तत्र कुम्भयुगलान्तरे-कुम्भद्वय मध्ये उदितः उदयं प्राप्तः तत्र विद्यमान इत्यर्थः तथा वैयमयः विचित्रदण्डो यस्मिन् स तथा, निर्मलबज्रमय स्तीक्ष्णो लटो मनोहरोऽङ्कुशो येषां ते तथा तेषाम्, 'तवणिज्ज सुबद्धलच्छ दप्पिय बलुधुराणं' तपनीय मुबद्ध कच्छदर्पित वलोदराणाम्, तत्र तपनीयमयी सुबद्धा कक्षा-हृदयरज्जुर्येषां ते तथा, दर्पिताः-संजातदोस्ते तथा-बलोधुरा बोत्कटास्ते तथा ततः पदत्रयस्य कर्मधारयः तेषाम्, 'विमळघणमंडल वइरामय लालाल लियतालणाणं' विमलघमण्ड स्वजय लालाललितताडनानाम्, विमलं तथा घनं मण्डलं येषां ते तथा, वनपयलालाभिललितं कर्णसुखप्रदं ताडनं येषां ते तथा 'णाणामणिरयणधंटापासगरजतामयबद्धलज्जुलंविरघंटाजुगलमहरसरमणहराणं' नानामणिरत्नघण्टापार्श्वगरजतमयबद्धरज्जुलम्बितघण्टायुगर स्वरमनोहराणाम्, तत्र नानामणिमय्यः पार्श्वगाः पार्श्वभागवतिन्यः घण्टा अर्थात् लघुघण्टा यस्य तत्तथा एवं प्रकारकं रजतमयी तिर्यग् बद्धा या राजु स्तस्या मवलम्बितं यद् घण्टा युगलं तस्य घण्टा युगलस्य यो मघुरस्वरवइरामयतिक्खल? अंकुल कुंभजुगलयंतरोडियाणं' इनके कुंभ द्वय के बीच में जो अकुश विद्यमान था वह वैडूर्य का बना हुआ है, दण्ड इसका विचित्र है, निर्मल है, वज्र के जैला कठोर है, तीक्षा है, लष्ट-मनोहर है, 'तवणिज सुषद्ध कच्छदप्पिअबलुद्धाराण' इसके पेट पर जो रज्जु यांधी गई थी वह तपनीय सुर्णकी बनी हुई थी, ये सब हाथी रूप वाले देव दर्प से युक्त हैं, बलिष्ठ हैं, 'विमल घणमंडलबहरामपलालाललियतालणाणं' इनका मण्डल-समूहविमल और धन सान्द्र रूप में रहता है। समल और भिन्न २ रूप में नहीं होता है इन्हें जो वज्रमय अंकुश ते द्वारा ताडना दी जाती है वह इन्हें कर्ण सुख प्रद होती है अरुन्तुद नहीं होती है । 'जाणामणिरयणघंटापासग रजतामय पद्ध. रज्जुलंबिय घंटाजुभल महुनसरभणहराणं' इनकी कटि पर जो घंटा युगल लटक रहा है उसके पास में छोटी पटिकाएं जो कि नागमणियों की बनी हुई हैं, वे विचित्त दंड निम्मलव इरामयतिक्खल? अङ्कुसकुंभजुगलयंतरोडियाणं' मेमना भयुसना વચમાં જે અંકુશ વિદ્યમાન હતું તે વેડૂર્યમણિરતું બનેલું છે, એને દંડ વિચિત્ર છે, निम छ, १०ना २॥ ४४२ छ, ती६४ छ, भने २ छ, 'तरणिज्ज सुबद्धकच्छ दप्पिअबलुद्धराणं' सेना पेट 6५२ २२ हो२९ धाम माव्यु तु ते तपासा सुन બનેલું હતું. આ બધાં હાથીરૂપધારી દેવ અભિમાનવાળા છે, બળવાન છે. 'विमल घणमंडलबइसमय लालाल लयताल गाणं' मनु म -समूह-वि भने धन સાન્દ્રરૂપમાં રહે છે. સમલ અને ભિન્ન ભિન્ન રૂપમાં હોતું નથી. એમને જે વજમય અંકુશ દ્વારા તાડના (માર) આપવામાં આવે છે તે તેમના કાનને સુખપ્રદ ભાસે છે. १२न्तु हाती नथी. 'णाणामणि रयणघंटापासगरजतामय बद्ध रज्जुलंबिय घंटाजुगलमहुरसरमणहराणं' मेमनी टि ५२२ टनी 18 २डी छे तेनी पासे नानी टीम ज० ६१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003156
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages562
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size17 MB
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