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________________ प्रकाशिका टीका-सप्तमवक्षस्कारः सू. २९ चन्द्रसूर्याणां विमानवाहकदेवसंख्यानि० ४७७ गतिमतामित्यर्थः 'अमियवलपीरियपुरिसोरपरकमाणं' अमितबलवीर्यपुरुषकारपराक्रमाणाम् 'महया अप्फोडिय सीहणायबोलकलकलरवेणं' महताऽऽस्फटितसिंहनादबोल कलकलरवेण शब्देन 'महुरेणं' मधुरेण-मनोहरेण च शब्देन 'पूरेंता' पूरयन्ति 'अंबरं दिसाओय सोभयंता' अम्बरं गगनं दिशाः पूर्वादिकाः शोभयन्ति-शोभमानानि कुर्वन्ति 'चत्तारि देवसाहस्सीओ' चत्वारि देव सहस्राणि 'सीहरूबधारीणं पुरथिमिल्लं बाहं बहन्ति' सिंहरूप धारिणां देवानां पूर्वी पूर्व दिगवस्थित बाहां परिवहन्तीति ।। सम्प्रति-दक्षिणवाहा वाहकदेवानां गजरूपधारिणां स्वरूपमाह-'चंदविमाणस्स दाहिणेणं' चन्द्रविमानस्य दक्षिणस्यां जिगमिपित दिशोदक्षिणे पार्श्व गजधारिणां देवानां चखारि देवसहस्राणि दाक्षिणात्यां पाहां परिवन्तीति परेणान्वयः । एतेषां देवानां विशेषणानि प्राह'सेयाणं' इत्यादि, 'सेयाणं' श्वेतानां श्वेतवर्णवताम् 'सुभगाणां' सुभगानाम्-सौभाग्यवताम् ऐसी अत्यधिक गति वाले ये होते हैं। 'अमिवयलवीरियपुरिसकारपरकमाणं' इनका बल इनका वीर्य इनका पुरुषकार पराक्रम अमित होता है 'महया अप्फो. डियसीहणायबोलकल कलरवेणं' ये बडे २ जोर से सिंहध्वनि करते हुए चलते हैं उससे आकाश वाचालित हो जाता है उस सिंह ध्वनि का निर्गत शब्द अस्पष्ट होता है परन्तु वह बडा मधुर होता है उससे ये अम्बर-आकाश एवं दिशाओं को सुशोभित करते हैं, ऐसी यह 'चत्तारि देव साहस्सीओ' चार हजार देवमंडली जो कि 'सीहरूवधारी णं पुरथिमिल्लं वाहं वहंति' सिंह के रूपवाली होती है, पूर्व दिग्वर्ती बाहा को लेकर चलनी है। ___ 'चंदविमाणस्स दाहिणेणं' चन्द्रविमान की दक्षिण दिशा में जो ४ हजार आभियोगिक जाति के देव रहते हैं वे किन २ विशेषणों वाले हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-चन्द्रविमान की दक्षिण दिशा में रही हुई दक्षिण वाहा को जो देव खेचते हैं वे गजरूपधारी होते हैं, 'सेयाणं' ये श्वेतवर्णवाले होते हैं, अतिव तो राय छ. 'अमियबलवीरियपुरिसक रपरकमाणं' मेमनु , समनु वीय, मेमना पु२२४।२-५२।५ अमित य छ, 'महया अप्फोडिय सीहणाय बोल कलकल रवेणं' तो (सिंह) मोटा मारथी सारे मा ४२ता ५४ या तेनाथी આકાશ ગાજી ઉઠે છે તે સિંહ ઇવનિના નિર્ગત શબ્દ અસ્પષ્ટ થાય છે પરંતુ તે ઘણું મધુર હોય છે તેનાથી આ અમર–આકાશ તેમજ દિશાનો સુશોભિત થાય છે એવી આ 'चत्तारि देवसाहस्सीओ' या २ हेमजी रे 'सीहरूवधारी णं पुरथिमिल्लं वाहं वहंति' सिना ३५वाजी हाय छे, पूर्व विती थाने सधन यासे छे. ____ 'चंदविमाणस्स द हिणेणं' यन्द्रविमाननी हिशाये २ ४ २ शानियोग જાતિના દેવ રહે છે તેઓ કયા કયા વિશેષણવાળા છે? તે તે સંબંધમાં પ્રભુ કહે છે–ચન્દ્રવિમાનની દક્ષિણદિશાએ રહેલી દક્ષિણુવાહાને જે દેવ ખેંચે છે તેઓ ગજરૂપધારી હોય છે, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003156
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages562
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size17 MB
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