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प्रकाशिका टीका - सप्तमवक्षस्कार: सू. २८ नक्षत्रचार गतिनिरूपणम्
परिभागौ ज्ञातव्याविति पष्ठं द्वारम् ।
सम्प्रति सप्तमद्वारं पृच्छन्नाह - 'चंद विमाणेणं' इत्यादि, चंदविमाणं भंते! कि संठिए पनते' चन्द्रविमानं खलु महन्त : किं संस्थितं कीदृवसंस्थानविशिष्टं प्रज्ञप्तं कथितमिति चन्द्र विमानस्याकारविषये प्रश्नः, भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'अद्धविठाणसं ठिए सव्वालियामए अन्भुग्गयमुसिए एवं सव्वाई णेयव्वाई' उत्तानीकृताकपित्थसंस्थानसंस्थितम् सर्वस्फटिकमय मभ्युद्गतोत्सृतम् अत्युम्नतम् जम्बूद्वीपस्य पूर्वदिगवस्थित विजयद्वारपुरस्थप्रकण्ठकगतप्रासादवर्णनं निरवशेषमत्र वक्तव्यम् विस्तरभयान्नात्र लिरूयते विशेष जिघृक्षुभिः स्वयमेव द्रष्टव्यम् एवं चन्द्रविमानवर्णितन्यायेन सर्वाणि होकर गति करता है अर्थात् ११० योजन रूप ज्योतिश्चक्र बाहल्य में जो नक्षत्रों का क्षेत्र विभाग चतुर्योजन प्रमाण रूप है उसकी अपेक्षा से उक्त दो नक्षत्रों का क्रम से अधस्तन और उपरितन भाग जानना चाहिये ।
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सप्तम द्वार वक्तव्यता
'चंद विमाणे णं भंते । किं संठिए पश्नत्ते' हे भदन्त चन्द्र विमान का संस्थान कैसा है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं - 'गोयमा ! अद्धकविट्ठसंठागसंठिए सव्वफलियामए अब्भुग्गयमुसिए एवं सव्वाई णेयव्वाई' हे गौतम! कपित्थ के आधे भाग का कि जिसे ऊपर की ओर मुंह करके रखा गया हो जैसा संस्थान - आकार होता है वैसा ही संस्थान चन्द्रविमान का है । यह चन्द्रविमान सर्वात्मना स्फटिकमणि का बना हुआ है अभ्युद्गतोत्सृत - अत्युन्नत है, यहां पर जम्बूद्वीप की पूर्वदिशा में अवस्थित विजय द्वार के प्रकण्ठक में रहे प्रासाद का जैसा वर्णन किया. गया है वैसा ही वह सब वर्णन यहां पर भी करलेना चाहिये, विस्तार हो जाने के भय से उसे हम यहाँ पर नहीं लिख रहे हैं। विशेष जिज्ञासुओं को वहीं पर સ્વાતિ નક્ષત્ર સર્વાંનક્ષત્રમંડળની ઉપર થઇને ગતિ કરે છે અર્થાત્ ૧૧૦ ચૈાજન રૂપ જ્યેતિશ્ચક માહત્યમાં જે નક્ષત્રાના ક્ષેત્રવિભાગ ચતુર્થાંજન પ્રમાણરૂપ છે તેની અપેક્ષાથી ઉક્ત એ નક્ષત્રાના ક્રમથી અધસ્તન અને ઉપરિતન ભાગ જાણવા જોઇએ.
સપ્તમદ્વાર વક્તવ્યતા
'चंद्रविमाणे णं भंते ! किं संठिए पन्नते' हे लदन्त ! यन्द्रनिभाननेो भार देवे। छे ? उत्तरमा प्रभु उडे छे - 'गोयमा ! अद्धकविट्ठ संठाणसंठिए सव्वफालियामर अब्भुग्गय मुसिए एवं सव्वाई यव्वाई' हे गौतम! पित्थना आधा भागने नेने उपदनी तर भुञ કરીને રાખવામાં આવ્યું હાય એના જેવા આકાર હાય તેવા જ આકાર ચન્દ્રતિમાનના છે આ ચન્દ્રવિમાન સર્વાત્મના સ્ફટિક જાતિનું બનેલુ છે. અભ્યુદ્ગતમ્રુત-અત્યુન્નત છે, અહીંયા જમ્મૂદ્રીંગની પૂદિશામાં અવસ્થિત વિજયદ્વારના પ્રકણકમાં રહેલા મહેલનું જેવુ વન કરવામાં આવ્યું તેવું જ સ વન અહી પણ લાગુ પડે છે. વિસ્તાર થઈ જવાના ભયે
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