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________________ प्रकाशिका टीका-सप्तमवक्षस्कारः स्. २६ मासपरिसमापकनक्षत्रनिरूपणम्। ४४५ चत्वारि विशाखाऽनुराधा ज्येष्ठा मूलनक्षत्राणि मिलित्वा ज्येष्ठमासं परिसमापयन्तीति । 'तयाणं चउरंगुळपोरिसीए छायाए सरिए अणुपरियट्टइ' तदा ज्येष्ठमासे खलु चतुरङ्गुलपौरुष्या छायया सूर्योऽनुपर्यट ते एतदेव दर्शयति-तस्सणं' इत्पादि, 'तस्सणं मासस्स जे से चरिमे दिवसे' तस्य खलु ज्येष्ठमासस्य योऽसौ चरमः पर्यन्तवति दिवसः 'तंसि च णं दिवसंसि दोपयाइं चत्तारि य अंगुलाई पोरिसी भवइ' तस्मिश्च खलु दिवसे द्वे पदे चत्वारि चाङ्गुलानि पौरुषी भवतीति । अथ चतुर्थ पृच्छति-गिम्हाण' इत्यादि, 'गिम्हाणं भंते ! चउत्थं मासं कइणक्खत्ता ऐति' ग्रीष्माणां ग्रीष्मकालस्य भदन्त ! चतुर्थ माषाढमा कति-कियत्संख्यकानि नक्षत्राणि नयन्ति स्वास्तं गमनेन परिसमायन्तीति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! एगं राइदियं णेई' मूल नक्षत्र ज्येष्ठमास के अन्त के एक रातदिन को समाप्त करता हैं। इस तरह से ये विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा और मूल नक्षत्र ज्येष्ठ मास के परिसमापक कहे गये हैं 'तयाणं चउरंगुलपोरिसीए छायाए सूरिए अणुपरियदृइ' इस ज्येष्ठ मास के अन्तिम दिन में चार अंगुल अधिक पौरुषी से युक्त हआ सूर्य परिभ्रमण करता है। इसी बात को 'तस्स णं मासस्स जे से चरिमे दिवसे तंसि च णं दिवसंसि दो पयाई चत्तारि य अंगुलाई पोरिसी भवई' प्रकट करने के लिये सूत्रकार ने यह सूत्र कहा है, इसमें इस बात का पोषण किया है कि ज्येष्ठ मास अन्त के दिन में पौरुषी का प्रमाण चार अंगुल अधिक दो पद रूप होता है। _ 'गिम्हा णं भंते ! चउत्थं मासं कह णक्खत्ता ऐति' हे भदन्त ! ग्रीष्मकाल का जो चतुर्थमास आषाढमास है उसे कितने नक्षत्र अपने उदय के अस्तंगमन द्वारा परिसमाप्त करते हैं ? तो इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा ! तिण्णि ये नक्षत्र सात हवस रातोn समास ४२ छे. 'मूलो एगं राइंदियं णेई' भूद नक्षत्र જયેષ્ઠમાસના છેલ્લા એક દિવસ રાતને સમાપ્ત કરે છે. આ રીતે, આ વિશાખા, અનુરાધા, ये। मने भूत नक्षत्र न्ये भासना परिसमा५४ उडेवामा माया छ-'तयाणं चउरंगुलपोरिसीए छायाए सूरिए अणुपरियदइ मा २४मासना मन्तिम हिसे यार मा अघि यौपाथी युत थये सूर्य परिसभर ४२ छ. मा४ वस्तुने 'तस्स णं मासस्स जे से चरिमे दिवसे तंसि च णं दिवसंसि दो पयाई चत्तारिय अंगुलाई पोरिसी भवई' ५४८ ४२पाना આશયે સૂત્રકારે પ્રસ્તુત સૂત્ર કહેલ છે જેમાં એ હકીકતની પુષ્ટી કરવામાં આવી છે કે જ્યેષ્ઠ માસના અંતિમ દિવસે પરૂષીનું પ્રમાણ ચાર આંગળ અધિક બે પદ રૂપ હોય છે, 'गिम्हाणं भंते ! चउत्थं मासं कइ णक्खत्ता णेति' 3 महन्त ! श्रीमन यतुर्थ - માસ જે અષાઢમાસ છે તેને કેટલા નક્ષત્ર પિતાના ઉદયન અસ્તવમન દ્વારા પરિસમાસ २ छ १ थान मा प्रभु -'गोयमा ! सिविण णवत्ता में नि' गौतम ! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003156
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages562
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size17 MB
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