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________________ ४०६ सम्पूछीपप्रज्ञप्तिस्त्र 'कइणक्खत्ता जोएंति' कति-कियत्संख्यकानि नक्षत्राणि युञ्जन्ति यथायोगंचन्द्रेण सह संयुज्य भाद्रपदमासभाविनीममावास्यां परिसमापयन्तीति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'दो पुठवाफग्गुणी उत्तराफग्गुणीय' प्रौष्ठपदीममावास्यां द्वे नक्षत्रे परिसमापयतः तद्यथा-पूर्वाफल्गुनी उत्तराफलानी च चशब्दात मघाऽपि ग्राह्या आसां पश्चानामपि युगभाविनीनाममावास्यानां यथोक्तनक्षत्रत्रयाणां मध्येऽन्यतमेन परिसमापनात् । 'अस्सोइण्णं भंते ! दो हत्थे चित्ताय' आश्वयुजी खलु भदन्त ! अमावास्यां कतिनक्षत्राणि युञ्जन्ति ? भगवानाह-हे गौतम ! द्वे नक्षत्रे युक्तः तद्यथा-हस्तश्चित्रा च, इदं च व्यवहारनसमाश्रित्य कथितम्, निश्चषमतेनतु आश्वयुजी ममावास्यां त्रीणि नक्षत्राणि परिसमापयन्ति तद्यथा उत्तर फल्गुनी हस्तश्चित्राचेति । 'कत्तिइण्णं दो साई विसाहाय' कार्तिकी खलु भदन्त ! भंते ! अमावासं कइ णक्खत्ता जोरंति' हे भदन्त ! भाद्रपद मासभाविनी अमावास्या को कितने नक्षत्र यथायोग्यरूप से चन्द्र के साथ संयुक्त होकर परिसमाप्त करते हैं ! इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं 'गोयमा ! दो पुव्वा फग्गुणी, उत्तर फग्गुणी य' हे गौतम ! भाद्रपद मासभाविनी अमावास्या को पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र और उत्तरफाल्गुनी नक्षत्र ये दो नक्षत्र परिसमाप्त करते हैं। यहाँ 'च' शब्द से मघा नक्षत्र का ग्रहण हुआ है। क्योंकि युगभाविनी इन पांच अमास्याओं की परिसमाप्ति इन तीन नक्षत्रों में से किसी एक नक्षत्र के द्वारा होती कही गई हैं । 'अस्तोइण्णं भंते ! दो हत्थे चित्ताय' हे भदन्त ! अश्वयूजी अमावास्या को कितने नक्षत्र परिसमाप्त करते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-हे गौतम ! आश्वयुजी अमावास्या को हस्तनक्षत्र और चित्रा नक्षत्र ये दो नक्षत्र परिसमाप्त करते हैं यह कथन व्यवहारनयकी अपेक्षा से कहा गया जानना चाहिये निश्चयनय के मतानुसार तो आश्वयुजी अमावास्या को तीन नक्षत्र परिसमाप्त करते हैं-उनके नाम उत्तर फाल्गुनी नक्षत्र, हस्त नक्षत्र और चित्रा नक्षत्र हैं। 'कत्तिइण्णं दो साई विसाहाय' हे भदन्त ! कार्तिकी अमावास्या को परिसमा ४२ छ ? भान पाममा प्रभु ४ छ- (गोयमा ! दो पुव्वा फग्गुणी उत्तरा फागुणी य) गौतम ! भाद्र ५४मास भाविनी अमावस्याने l गुनी नक्षत्र मन उत्तर ફાગુની નક્ષત્ર આ બે નક્ષત્ર પરિસમાપ્ત કરે છે. અહીં “ચ” શબ્દથી મઘા નક્ષત્રનું ગ્રહણ થયેલ છે કારણ કે યુગભાવિની આ પાંચ અમાવસ્યાઓની પરિસમાપ્તી આ ત્રણ નક્ષત્રभांथा ६ ४ नक्षत्र द्वारा-2वानु ४३वायु . (अस्सोइण्ण भंते ! दो हत्थो चित्ता य) હે ભદન્ત! અશ્વયુજી અમાવાસ્યાને કેટલા નક્ષત્ર પરિસમાપ્ત કરે છે ! આના ઉત્તરમાં પ્રભુ કહે છે-હે ગૌતમ! અશ્વયુજી અમાવાસ્યાને હસ્ત નક્ષત્ર અને ચિત્રા નક્ષત્ર આ બે નક્ષત્ર પરિસમાપ્ત કરે છે. આ કથન વ્યવહાર નયની અપેક્ષાથી કહેવામાં આવ્યું છે એમ જણાવું જોઈએ. નિશ્ચય નયના મતાનુસાર અશ્વયુજી અમાવાસ્યાને ત્રણ નક્ષત્ર પરિસમાપ્ત Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003156
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages562
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size17 MB
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