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________________ ©2 जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे श्रविष्ठी पूर्णिमा अस्येति श्राविष्ठः श्रावणमासः तस्य श्रावणमासस्येयममावास्या श्रविष्ठी श्रावणमास भाविनीत्यर्थः । एवमेव प्रौष्ठपद्याद्यमावः स्यादिष्वपि ज्ञातव्यमिति ॥ सम्प्रति-यैर्नक्षत्रैरेकैका पौर्णमासी परिसमाप्यते तानि नक्षत्राणि प्रष्टुमाह-- 'साविट्ठीगं भंते' इत्यादि, 'साविद्विणं भंते !" श्राविष्ठीं खलु भदन्त ! पौर्णमासीम् 'करणक्खता जोगं जोति' कति - कियत्संख्यकानि नक्षत्राणि योगं संबन्धं योजयन्ति, अर्थात् कति नक्षत्राणि चन्द्रेण सह संयुज्य परिसमापयन्तीति प्रश्नः, भगवानाह - 'गोयमा' हे गौतम! 'तिष्णि णक्खत्ता जोगं जोएंति' त्रीणि नक्षत्राणि योगं संबन्धं योजयन्ति - कुर्वन्ति त्रीणि नक्षत्राणि चन्द्रेण सह संयुज्य परिसमापयन्तीत्यर्थः, नक्षत्रत्रयमेव दर्शयति- 'तं जहा ' इत्यादि, 'तं जहा ' शंका- श्राविष्टी पूर्णिमा धनिष्ठा नामक नक्षत्र के योग से कि जिसका दूसरा नाम श्रविष्ठ नक्षत्र भी कहते है, परन्तु श्रविष्ठी अमावास्या है वह तो श्रविष्ठा नक्षत्र के योग से नहीं होती है क्योंकि अमावास्या अश्लेषा और मघा नक्षत्र के योग से प्रतिपाद्यमान हुई है तो उस अमावास्या को श्राविष्ठी कैसे कहते हैं ? तो इस शंका का उत्तर ऐसा है श्राविष्ठा पूर्णिमा जिसकी है वह श्राविष्ठ है ऐसा वह श्राविष्ठ श्रावणमास है उस श्रावणमास की यह अमावास्या है अतः इसे भी श्रावि. ष्ठी - श्रावणमास भाविनी कह दिया गया है इसी तरह का कथन प्रौष्षपदी अमावास्या आदिकों में भी जानना चाहिये 'साविट्टी णं भंते! पुण्णिमं कइ णक्खत्ता जोगं जोएंति' अब गौतमस्वामीने प्रभु से पूछा है - हे भदन्त ! श्राविष्ठी पूर्णिमा को पौर्णमासी को कितने नक्षत्र चन्द्र के साथ सम्बधित होकर समाप्त करते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं - 'गोयमा ! तिष्णि णक्खत्ता जोगं जोएंति' हे गौतम! तीन नक्षत्र चन्द्र के साथ सम्बन्धित होकर पूर्णिमा को શંકા-શ્રાવિષ્ઠી પૂર્ણિમા ધનિષ્ઠા નામક નક્ષત્રના ચેાત્રથી કે જેનું ખીજું નામ શ્રવિષ્ઠા છે, થાય છે પરન્તુ શ્રાવિડી અમાવાસ્યા જે છે તે તે શ્રવિષ્ઠા નક્ષત્રના ચેગી થતી નથી કારણ કે અમાવાસ્યા અશ્લેષા અને મઘા નક્ષત્રના ચેગથી પ્રતિપાદ્યમાન થયેલી છે. તે તેને શ્રાવિષ્ઠી અમાસ કેવી રીતે કહા હૈ? આ શંકાને જવામ આ પ્રમાણે છે શ્રાવિષ્ઠા પૂર્ણિમા જેની છે તે શ્રાવિણ્ડ છે એટલે એવે! આ શ્રાવિષ્ઠ શ્રાવણમાસ છે તે શ્રાવણમાસની આ અમાવાસ્યા છે એથી આને પણ શ્રાવિષ્ઠીશ્રાવણમાસ ભાવિની કહેવામાં આવેલ છે. આ જ પ્રકારનું કથન પ્રૌšપટ્ટી અમાવાસ્યા वगेरे भाटे पशु सागु पाडवु लेहये. 'साविट्ठी णं भंते ! पुष्णिमं कइ णक्खत्ता जोगं जोएंति' हुवे गौतमस्वाभीये अभुने खेषु पूछयु-डे लहन्त ! श्राविष्ठा पूलुभाने -पूમાસને-કેટલા નક્ષત્ર ચન્દ્રની સાથે સમ્બન્ધિત થઇને સમાપ્ત કરે છે? આના જવાષમાં प्रभु उडे - 'गोयमा ! तिष्णि णक्खत्ता जोग जोएंति' हे गौतम! ऋणु नक्षत्र यन्द्रनी साथै अभ्यन्धित भने पूर्णिमा समाप्त 'तं जहा' मात्र नक्षत्र माहे- 'अभिई । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003156
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages562
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size17 MB
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