SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 225
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २१६ जम्बूद्वीपप्रशतिसूत्रे चन्द्रमण्डल परिध्यनुसारेण पूर्वोक्तक्रमेण द्वितीयादीनामपि नक्षत्रमण्डलानां मुहूर्त्तगति ज्ञातव्या ॥ कथितं प्रतिमण्डलं चन्द्रादीना योजनात्मकं प्रतिमुहूर्त्ते गमनम् ॥ सम्प्रति तेषामेव चन्द्रादीनां प्रतिमण्डलं भागात्मकं छुहूर्त्तगमनं कथयितुं प्रश्नयन्नाह' एगमेगेणं मंते' इत्यादि, 'एगमेगेणं भंते! मुहुत्तेणं' एकैकेन भदन्त ! [हूर्तेन 'केवइयं भागसयाई गच्छ३' किन्ति भागशतानि गच्छति, हे भदन्त ! एकैकेन मुहूर्तेन चन्द्रः कियन्ति भगशतानि गच्छतीति प्रश्नः, भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'जं जं मंडलं उवसंकमिता चारं चरइ' यद् यन्मण्डलं प्रथमं वा द्वितीयादिकं वा मण्डल ग्रुपसंक्रम्य - संप्राप्य चन्द्रश्चारं गतिं चरति करोति 'तस्स तस्स मंडलपरिक्खेवस्स' तस्य तस्य मण्डलपरिक्षेपस्य तस्य तस्य मण्डलस्य संबन्धिनो ये परिक्षेवा स्तत्संबन्धिन इत्यर्थः 'सत्तरस अट्ठि भागसए गच्छ३' सप्तदशाष्ट षष्टि भागशतानि गच्छति, अष्टष्टिमागैरधिकानि सप्तदश भागशतानीत्यर्थः गच्छति - गमनं करोति प्रतिहतमिति । 'मंडलं सय सहर सेणं' में दो दो तारा होते हैं । इस तरह अपने अपने मण्डल में अवतार सम्बन्धी चन्द्र की परिधि के अनुसार पूर्वोक्त क्रम से द्वितीयादिक नक्षत्र मंडलों की मुहूर्त गति जान लेनी चाहिये । हरएक मंडल में चन्द्रादिकों का योजनात्मक गमन कहकर अब सूत्रकार उन्हीं चन्द्रादि कों का हरएक मण्डल में मुहूर्त गमन कहते हैं। इस में गौतमस्वामीने प्रभु से ऐसा प्रश्न किया हैं- 'एगमेगेणं भंते! मुहुत्तेणं' हे भदन्त ! एक एक मुहूर्त में चन्द्र 'केवइथं भागसयं गच्छछ' कितने सौ भाग तक जाता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा ! जं जं मण्डलं उवसंकमित्ता चारं चर' हे गौतम! जिस जिस मंडल पर पहुंच कर चन्द्र अपनी गति क्रिया करता है 'तस्स तस्स मंडल परिक्खेबस्स' उस उस मंडल की परिधि के 'सत्तरसअट्ठसट्टिभागसए गच्छ३' १७६८ भाग तक हर एक मुहूर्त में वह जाता है 'मंडल सयसहस्सेणं अट्ठाणउइएय सएहिं छेता' तथा १ लाख ९८ वे हजार भागों को विभक्त પોતપોતાના મંડળમાં અવતાર સંબંધી ચન્દ્રમંડળની પરિધિ મુજબ પૂર્વોક્ત ક્રમથી દ્વિતીયાદિ નક્ષત્રમ`ડળેાની મુહૂત ગતિ જાણી લેગી જોઇએ. દરેક મંડળમાં ચન્દ્રાદિકનુ ચેનાત્મક ગમન કહીને હવે સૂત્રકાર તેજ ચન્દ્રાદિકનુ દરેક મડળમાં મુહૂ ગમન કહે છે. श्राभां गौतमस्त्राभीञे प्रभुने मेरी रीने प्रश्न अर्थो छे ! ' एगमेगेणं भंते ! मुहुत्तेणं' हे लढत ! ये!-! मुहूर्त भां यन्द्र 'केवइयं भागस्यं गच्छइ' डेटा सो लाग सुधी लय हे भेटले है डेटा सेो भाग सुधी गति हरे ! सेना श्वाश्रभां प्रलु उडे - 'गोयमा ! जं जं मण्डलं उवसंकमित्ता चारं चरइ' हे गौतम! थे ? भांडण पर हथीने यंद्र पोतानी गति डिया ४३ छे. 'तास तस्स मंडलप रिक्खेवस्स' तत् तत् भउजनी परिधिना 'सत्तरस अट्ठसट्टिभागसए गच्छ' १७६८ लागी सुधी हरे: भुर्तभां ते लय छे. 'मंडलं सयस हरसेणं अट्टाइए सहि छेत्ता' ते १ लाख ४८ हुनर लागोने विलत मरीने प्रतिमुहूर्त भां ते गति हरे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003156
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages562
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy