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________________ जम्बूद्वीपतियों भिलक्ष्योपसंक्रम्य चारं गतिं चरति-करोति, 'तयाणं' तदा तस्मिन काले सर्वाभ्यन्तरमण्डल संक्रमणकाले खलु ‘एगमेगेणं मुहुत्तेणं' एकैन मुहर्तेन प्रतिमुहर्त मित्यर्थः 'केवइयं खेत्तं गच्छइ' कियत्-वियाप्रमाण क्षेत्रं गच्छति-चरतीति प्रश्नः, भगवानाह-गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'पंच नोयणसहस्साई' पञ्चयोजनसहस्राणि 'दोणि य पण्णटे जोयणसए' द्वे च पञ्चषष्टि योजनशते, पञ्चषष्टयधिक योजनशते इत्यर्थः 'अट्ठारसयभागसहस्से' अष्टादश च भागसहस्राणि 'दोष्णि य तेवढे मागसए गछइ' द्वे च त्रिषष्टिभागशते, त्रि षष्टयधिके द्वे भागशते इत् थः गच्छति एकैकेन मुहूर्तेन, भागपदं चावयववाचकम्, अवयवभावयविन विना न संभवति, ततश्च कस्य अवयविन इमे इत्याशङ्कायामाह-मंडलं' इत्यादि, 'मंडलं च एकवीसाए भागसहस्से हि' मण्डलञ्चै कविंशत्या भागसा: 'नवहिय सटेहिं सएहि' नवभिश्च षष्टयधिकैः तैश्छित्वा तस्य च्छेदं कृत्वा इति, अयं भावः-अत्र खलु नक्ष मण्डलगच्छई' उस समय वे एक एक मुहूर्त में कितने क्षेत्र पर जाते हैं ? इमके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा! पंच जोयणसहस्साई दोणि य पगटे जोयणसए' हे गौतम ! उस समय वे ५२६९ योजन क्षेत्र तक चले जाते हैं 'अट्ठारसय भाग सहस्से दोणि य तेवढे भागसए गच्छई' और १८२६३ भाग तक चले जाते हैं भाग पद अवयव वाचक है, अतः ये भाग यहां किसके गृहीत किये गये हैं इस प्रकार की आशंका के उत्तर के निमित्त 'मंडलं च एकवीसाए भाग सदस्तहिं नवहिय सहेहि सएहिं' ऐसा सूत्र कहा गया है इसका भाव ऐसा है कि नक्षत्र मंडल का काल ५९ मुहूर्तात्मक है मुहूर्त के ३६७ भाग कर लेना चाहिये इसके अनुसार मुहूर्त गति का विचार इस प्रकार से किया गया है-रात्रि और दिवस के मध्य में तीस मुहूर्त होते हैं अर्थात एक दिन रात ३० मुहूर्त क होता है इन में २९ मुहूर्त और मिलाये जाते हैं तब दोनों का जोड ५९ होजात તે સમયે તેઓ એક એક મુહૂર્તમાં કેટલા ક્ષેત્રે ઉપર ગતિ કરે છે? એના જવાબમાં प्रभु छ-'गोयमा ! पंच जोयणसहस्साई दोणिय पण्णदे जोयणसए' गौतम ! ते समये तेयो ५२१५ यौन क्षेत्र सुधी गति ४२ छ. "अद्वारसय भाग सहस्से दोष्णिय तेवढे भ ग सए गच्छइ' भने १८२६3 Min सुधी 21 गति ४२ ०८ २3 छ '' પદ અવયવ વાચક છે. એથી અત્રે એ “ભાગો યા પદાર્થના ગૃહીત કરવામાં આવેલા छ ? Al and it आना भित्ते ‘मडलं च एकरुवीसाए भागसहस्सेहिं नाहिय सद्वेहिं सहि' । सूत्र५७ ४ i मा छे. मान। माप प्रमाणे छे , नक्षत्र મંડળનો કાળ ૫૯ મુહૂર્નાત્મક છે. મુહૂર્તના ૩૬૭ ભાગ કરી લેવા જોઈએ. આ મુજબ મુહૂર્ત ગતિને વિચાર આ પ્રમાણે આવેલ છે–રાત્રિ અને દિવસના મધ્યમાં ત્રીસ મુહુર્ત હોય છે એટલે કે એક દિવસ-રાત ૩૦ મુહૂર્તના હોય છે. આમાં ૨૯ મુહૂર્તો બીજા એડવામાં આવે છે ત્યારે બન્નેને વેગ ૫૯ થાય છે, ૫૯ ને ૩૬૭ વડે ગુણાકાર કરવાથી Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003156
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages562
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size17 MB
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