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प्रकाशिका टीका-सप्तमवक्षस्कारः सु. ८ दूरासन्नादिनिरूपणम्
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पूर्वोक्तमेव दिक्प्रश्नमाह - 'तं भंते ! किं एगदिसि गच्छंति छद्दिसिं गच्छति' तद् भदन्त ! froster विषयकं क्षेत्र गच्छतोऽथवा यावत् पद्दिग् विषयकं क्षेत्र गच्छत इतिप्रश्नः, मगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'नियमा छद्दिसिं गच्छति' नियमात् ऋदिशि-नियमतः षदिविषयकं क्षेत्र गच्छतः, तत्र पूर्वादिषु तिर्यग्रदिक्षु च उदितः सम् स्फुटमेव गच्छन् दृश्यते सूर्यः ऊर्ध्वाधोदिगगमनं च यथा भवति तथा पर्वमेव दर्जितमिति पावत्पदग्राय प्रकरणं समाप्तम् ॥
सम्प्रति-प - एतदेव वस्तु अतिदेश पूर्वक मवभासनादि सूत्राण्याह - ' एवं ओभासेंति' इत्यादि, 'एवं ओभार्सेति' एवं गमनसूत्रप्रदर्शितप्रकारेण सूर्यो अवभासयतः ईषदुद्योतयतः, यथा स्थूलतरमेव वस्तु दृश्यते तमेव प्रकारं संक्षेपेण सूत्रकारो दर्शयति- 'तं भंते' इत्यादि, 'तं
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आसन्न हुए क्षेत्र पर ही चलते हैं अनानुपूर्वी से अनासन्न क्षेत्र पर नहीं चलते है। यदि ऐसा होने लगे तो लोकप्रसिद्ध व्यवस्था में हानि होने का प्रसङ्ग प्राप्त हो जाता है । 'तं भंते । किं एगदिसिं गच्छति छद्दिसि गच्छंति' हे भदन्त ! ये दोनों सूर्य क्या एक दिशा में एक दिशा विषयक क्षेत्र में चलते हैं या यावद छह दिशा विषयक क्षेत्र में चलते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं 'गोयमा ! नियमा छद्दिसि' हे गौतम ! ये दोनों सूर्य नियम से छह दिशा विषयक क्षेत्र में चलते हैं। पूर्वादि दिशाओं में एवं तिर्यक्र आदि दिशाओं में उदित हुआ सूर्य स्फुट रूप से चलता हुआ दिखलाई देता है तथा उर्ध्व दिशा अधो दिशा में सूर्य का गमन जैसा होता है वैसा वह हमने पहिले प्रकट कर दिया है इस प्रकार यायस्वद ग्राह्य प्रकरण यहां तक समाप्त हुआ है 'एवं ओभासेति' इस प्रकार गमन सूत्र में प्रदर्शित प्रकार के अनुसार ये दोनों सूर्य ईषत् रूपमें स्थूलतर वस्तुको प्रकाशित करते हैं कि जिससे वह वस्तु दिखलाई देने लगती है इसी विषय को
ગૌતમ ! એ બન્ને સૂર્ય આનુપૂર્વીથી આસન્ન થયેલા ક્ષેત્ર ઉપર જ ચાલે છે, અનાનુપૂર્વીથી અનાસન ક્ષેત્ર ઉપર ચાલતા નથી. જો આ પ્રમાણે થવા માંડે તે લેપ્રસિદ્ધ व्यवस्थाभां हानि थवानी स्थिति उत्पन्न थाय छे. 'तं भंते! किं एगदिसि गच्छति छद्दिसि રાજ્જીતિ' હું ભઈત ! એ બન્ને સૂર્યાં શુ એક દિશામાં—એક દિશાવિષયક ક્ષેત્રમાં ચાલે છે. अथवा यावत् छद्विशा विषय क्षेत्रमां न्यासे हे ? सेना स्वाभां प्रभु डे - 'गोयमा ! नियमा छद्दिसि डे गौतम ! से मन्ने सूर्यो नियमपूर्व ६ हिशाविषयक क्षेत्रमां या छे. पूर्वाह દિશાઓમાં તેમજ તિર્ વગેરે દિશાઓમાં ઉદિત સૂર્યાં સ્ફુટ રૂપમાં ચાલતા જોવા મળે છે. તેમજ ઉર્ધ્વ દિશા, અધાદિશામાં સૂતું ગમન જેવું હોય છે તેવું તે અમેએ પહેલા अरे छे. साप्रमाणे 'यावत् पद' थी ग्राह्य प्र४२ अत्रे समाप्त थयुं छे. 'एवं ગોમúતિ' આ પ્રમાણે ગમનસૂત્રમાં પ્રદર્શિત પ્રકાર મુજબ એ મને સૂર્યાં ઈષરૂપમાં સ્થૂલતર વસ્તુને પ્રકાશિત કરે છે. જેથી તે વસ્તુ જોવામાં આવે છે. એજ વિષયન સૂત્ર
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