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________________ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे गौतम ! 'महाहिमवंत वासहरपव्वयं पणिहाय आयमुच्चत्तुवेहविक्खंभपरिक्खेवं पडुरच' महाहिमवद्वर्षधरपर्वतं प्रणिधाय आश्रित्य आयामोच्चत्वोद्वधविष्कम्भ परिक्षेपं प्रतीत्य अपे. क्ष्य 'ईसि खुड्डतराए चेव हस्सतराए चेव णीयतराए चेव चुल्लहिमवंते य इत्थ देवे महिदीए जाव पलिओवमटिइए परिवसइ' ईषत्क्षुद्रतरक एव किञ्चिल्लघुतर एव यथासंभवं योजनापेक्षया विधेयत्वेनाऽऽयामाधपेक्षया, इस्वतरक एव-अति हूस्व एव उद्वेधापेक्षया नीचतरक एव अति-नीच एब उच्चत्वापेक्षया, तथा क्षुद्रहिमवांश्च देवः अत्र अस्मिन् क्षुद्रहिमवति वर्षधरपर्वते परिवसति इति परेणान्वयः, स कीदृशः ? इत्याह-'महर्द्धिको यावद् पल्योपमस्थितिकः, यावत्पदेन-"महाद्युतिका, महाबलः, महायशाः, महासौख्यः, महानु. भावः, इत्येषां पदानो संग्रहो बोध्यः, एषां व्याख्याऽष्टमसूत्राद् बोध्या परिवसति निव: कहा है ? (गोयमा ! महाहिमवंतवासहरपव्वयं पणिहाय आयामुच्चत्तुव्वेह विक्खंभपरिक्खेवं पडुच्च ईसिं खुडुतराए चेव हस्सतराए चेव णीअतराए चेव चुल्लहिमवंते इत्थ देवे महिडिए जाव पलि ओवमट्टिइए परिवप्लइ से एएणढे गं गोयमा ! एवं वुच्चइ चुल्लहिमवंते वासहरपव्वए) हे गौतम ! महाहिमवन्तवर्ष घर पर्वत की अपेक्षा लेकर के-उसके आयाम, उच्चत्व उछेध विष्कम्भ, परिक्षेपको आश्रित करके-क्षुद्रहिमवत् पर्वत का आयाम आदिका विस्तार थोडा है लघुनर है महाहिमवान के उद्वेध इस्वतरक अति इस्व है। महाहिमवान के उच्चत्व की अपेक्षा उसका उच्चत्व अतिनीचा है । तथा क्षुद्रहिमवान् नामका देव इस क्षुद्रहिमवान् वर्षधर पर्वत पर रहता है यह युद्रहिमवान् नामका देव महर्दिक है और यावत् एक पल्योपमकी स्थितिवाला है यहां यावत्पद से 'महाद्युतिकः, महाबलः, महायशाः, महासौख्या, महानुभावः' इन पदोंका ग्रहण हुआ है इन पदों की व्याख्या अष्टम सूत्र से ज्ञातव्य है इस कारण हे गौतम ! 'गोयमा ! महाहिमवंतवासहरपञ्चयं पणिहाय आयामुच्चत्तुव्वेह विक्खंभपरिक्खेव पडुच्च ईसिं खुडुतराए चेव हस्सतराए चेवणीअतराए चेव चुल्ल हमवंत इत्थ देवे महिड्ढिए जाव पलिओवमटिइए पडिवसइ से एएढेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ चुल्ल हिमवंते वासहर पव्वए' 3 गोतम! महभिवन्त ध२ पतनी अपेक्षाये तना मायाम, ઉચ્ચત્વ, ઉધ વિખંભ, પરિક્ષેપને આશ્રિત કરીને શુદ્ર હિમવત પર્વતને આયામ વગેરે વિસ્તાર અલ્પ છે. લઘુતર છે. મહાહિમવાનના ઉધની અપેક્ષાએ આને ઉકેધ હસ્વતરક અતિ હસ્વ છે. મહાહિમવન્તના ઉચ્ચત્વની અપેક્ષાએ એ પર્વતની ઊંચાઈ ઓછી છે. બહુ જ કામ છે. તથા ક્ષુદ્ર હિંમવાન નામક દેવ એ ક્ષુદ્ર હિમવાનું વર્ષધર પર્વત ઉપર રહે છે. એ ક્ષુદ્રહિમાવાન નામક દેવ મહદ્ધિક છે અને યાવત્ એક પલેપમ જેટલી स्थिति धरावे छे. मी यावत् ५४थी 'महाद्युतिकः, महाबलः, महायशाः, महासौख्याः, महानुभावः' से पहो असर थया छ. से पहनी व्याभ्या अष्टम सत्रमाथी one सेवी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003155
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages798
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size24 MB
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