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________________ प्रकाशिका टीका-पञ्चमवशस्कारः सू. ११ अभिषेकनिगमनपूर्वकमाशीर्वादः तत्रैक ईशानः भगवन्तं तीर्थकरं करतलसंपुटेन करतलयोः, उर्वाधो व्यवस्थित्योः संपुटं शुक्तिका संपुटमिवेत्यर्थः, तेन गृह्णाति 'गिह्नित्ता' गृहीत्वा 'सीहासणवागए पुरस्थाभिमुहे सणिसणे' सिंहासनवरगतः पौरस्त्याभिमुखः पूर्वाभिमुखः सनिषण्णः, उपविष्टवान् ‘एगे ईसाणे पिट्टओ आयक्त्तं धरेइ' एक ईशानः पृष्टतः, आतपत्र-छत्रं धरति 'दृवे ईसाणा उभो पर्सि चामरुक्खे करेंति' द्वालीशानौ उभयोः पार्श्वयोः, चामरोत्क्षेपं कुरुतः ‘एगे ईसाणे पुरो सूलपाणी चिट्ठइ' एक ईशान पुरतः शूलपाणिः शूल: पाणौ हस्ते यस्य स तथा भूतः सन् तिष्ठति 'तएणं से सके देविंदे देवराया आभियोगे देवे सदावेई' ततः, ईशानेन्द्रेण भगवतः, तिर्थकरस्य कर संपुटे ग्रहणानन्तरं खलु स शक्रो देवेन्द्रो देवराजः, आभियोग्यान, आज्ञाकारिणो देवान् शब्दयति आपति सदा वित्ता' शब्दयित्वा, आहूय 'एसो वि तहचेव आणति देइ ते वि तहचेव उवणेति' एषोऽपि शक्रः, तथैव अच्युतेन्द्रवदभिषेकविषयकामाज्ञप्तिका ददाति तेऽपि-आभियोगिकाः, देवाः, तथैव अच्युतेन्द्राभियोग्यदेवाइव, अभिषेकवस्तूनि, एक ईशानेन्द्र ने भगवान् तीर्थकर को अपने करतल संपुट द्वारा पकडा गिण्हित्ता सीहासणवरगए पुरस्थाभिमुहे सणिसणे' और पकडकर पूर्व दिशा की ओर मुंह करके सिंहासन पर बैठ गया 'एगे ईसाणे पिट्टओ आयवत्तं धरेइ, दुवे ईसाणा उभओ पासिं चामरुखेवं करेंति' दूसरे ईशानेन्द्र ने पीछे से खडे होकर प्रभुके ऊपर छत्रताना दो इशानेन्द्रों ने दोनों ओर खडे होकर प्रभुके ऊपर चामर ढोरे 'एगे ईसाणे पुरओ मूलपागी चिट्ठइ' एक ईशानेन्द्र हाथमें शूल लेकर प्रभुके साम्हने खडा हो गधा 'तएणं से सक्के देविंदे देवराया आभियोगे देवे सद्दावेइ' इसके बाद देवेन्द्र देवराज शक्र ने अपने आभियोगिक देवों को बुलाया-'सद्दा. वित्ता एसो वि तहचेव अभिसेआणत्ति दे ते वि तं चेव उवणेति' और बुलाकर इसने भी अच्युतेन्द्र की तरह उन्हें अभिषेक योग्य सामग्री लानेकी आज्ञा दी थ गये 'विउव्वित्ता एगे ईसाणे भगवतित्थयरं करयलसंपुडेगं गिण्हइ' समाथी ये शानन्द्र सावन ती ४२२ पोताना २तस सटमा 68.व्य.. गिह्नित्ता सीहासणवरगए पुरत्थाभिमूहे सष्णिसण्णे' मने 41 ॥ त२६ भुपराधःन सिहासन ५२ मेसायर्या 'एगे ईसाणे पिटुओ आयवत्तं धरेइ, दुवे ईसाणा उभओ पासिं चामरुक्खेवं करे ति' मा ४ ઈશાનેન્દ્ર પાછળ ઊભા રહીને પ્રભુ ઉપર છત્ર તાણ્યું. બે ઈશાનેન્દ્રોએ બન્ને તરફ ઊભા રહીને પ્રભુ ७५२ यम२३:५नी १२ पात ४२१. 'एो ईसाणे पुरओ सूलपाणी चिटुइ' । शानेन्द्र मां शुस न प्रभुनी सामे असे २ह्यो. 'तएणं से सक्के देदे देवराया आभियोगे देवे सदावेइ' त्यार मा देवेन्द्र १२१ श पोताना मालियो वान माराव्या-'वदावित्ता एसो वि तह चेच अभिसे आणति देइ ते वि तं चेत्र उवणे ति' म मावीन तेथे पर अच्युतेन्द्रना જેમ તે બધાને અભિષેક ગ્ય સામગ્રી એકત્ર કરવાની આજ્ઞા કરી. અયુતેન્દ્રના આભિ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003155
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages798
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size24 MB
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