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________________ २८६ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र महाबलः, महायशाः, महासौख्या, महानुभावः, पल्योपमस्थितिकः” इत्येषां ग्रहणम्, व्याख्याचाष्टमसूत्राद्बोध्या । ‘से णं तत्थ स खलु अनादृताभिधो देवः, तत्र-जम्बू सुदर्शनायाम् विहरति, किं कुर्वन् ? इत्यपेक्षायामाह-'चउण्हं' चतमृणाम् इत्यादि-'चउण्हं' सामाणिय साहस्सीणं' चतसृणां सामानिक-साहस्रीणां रतुः सहस्त्र संख्यक सामानिक देवानाम् 'जाव' यावत्-यावत्पदेन 'चतसृणामग्रमहिषीणाम्, सपरिवाराणां तिमृणां परिषदां सप्तानामनीकानाम् सप्तानामनीकाधिपतीनाम्, षोडशानाम्' इत्येषां पदानां सङ्ग्रहो बोध्यः,एषां व्याख्या - ष्टमसूत्राबोध्या । 'आयरक्ख देवसाहस्सोणं' आत्मरक्षदेवसाहस्रीणाम्-पोडशसंख्यानामात्मरक्षकसहस्राणाम् तथा 'जंबूद्दीवस्स णं दीवस्स' जम्बूद्वीपस्य खलु द्वीपस्य तथा-'जंबूर सुदंसणाए' जम्ब्धाः सुदर्शनायाः तथा 'अणाढियाए' अनादृतायाः-अनादृताभिधानायाः 'रायहाणीए अण्णेसिं च' राजधान्याः अन्येषाम्-चतुसहस्रसामानिकदेवायतिरिक्तानां च 'बहूणं देवाण य देवीण य' बहूनां देवानां च देवीनां च 'जाव' यावत्-यावत्पदेन-आधिपत्यं दिसमृद्धि से युक्त होने से महद्धिक है-महर्द्धिक पद उपलक्षण हैं अतः महाधुति वाला महाबल शाली, महान् यशवाला, महा सुखवाला, महानुभाव एक पल्योपम की स्थितिवाला है इन पदों का अर्थ आठवे सूत्र में कहे अनुसार समझलेवें से णं तत्थ' वह अनादृतदेव जंबू सुदर्शना में निवास करते हैं-वहाँ निवास करता हुआ वह क्या करते हैं इस जिज्ञासा शमनार्थ कहते हैं-'चउण्हं सामाणिय साहस्सीणं' चार हजार सामानिक देवों का 'जाव' यावत्पद से परिवार सहित चार हजार अग्रमहिषीयों का तीन परिषदाओं का सात सेनाओं का, सात सेनाधिपतियोंका यहां षोडश पद का संग्रह समझलेवें अतः 'आय. रक्खदेवसाहस्सीणं' सोलह हजार आत्मरक्षक देवों का तथा 'जंबूद्दीवस्स णं दीवस्स' जंबूद्वीप नामक द्वीपका तथा जंबूए सुदंसणाए' जंबू सुदर्शनाका तथा 'अणाढियाए' आनादृता नामकी 'रायहाणोए' राजधानी का इससे भिन्न 'बहू णं देवाण य देवीण य' अनेक देव देवियों का 'जाव' यावतू अधिपतित्व, परમહાબલશાલી, મહાન યશવાળા, મહાસુખવાળા, મહાનુભાવ, એક પોપમની સ્થિતિવાળા छ, मा तमाम पहाना सथ भाभा सूत्रमा ४ह्या प्रमाणे सभ७ सेवा. 'से गं तत्थ भी અનાદત દેવ જંબુસુદર્શાનામાં નિવાસ કરે છે. ત્યાં નિવાસ કરતાં કરતા તે શું કરે છે ? यज्ञासाना शमन भाटे सूत्रा२ ४३ छ–'चउण्हं सामाणियसाहस्सीणं' यार २ सामाCAN Bानु 'जाव' यावत् ५४थी स५/२वार यार ७०४२ २५महिषयानु, ऋण परिषहाઓનું, સાત સેનાઓનું સાત સેનાધિપતિનું, અહિંયાં ડિશ પદને સંગ્રહ સમજી . तेथी 'आयरक्खदेवसाहस्सीणं' से M२ २मात्मरक्षा हेवानु, तथा 'जंबूदीवस्स गं दीवस्स' दी५ नामना दीपनु, तथा 'जंबूए सुदंसणाए' ४५ सुदृशनानु, तथा 'अणाढियाए' मनात नमनी 'रायहाणीए' २:४धानानु शिवाय 'बहूणं देवाण य देवीण य' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003155
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages798
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size24 MB
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