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________________ प्रकाशिका टीका-चतुर्थवक्षस्कारः सू० २३ सुदर्शनाजम्बूवर्णनम् 'अहियमणणिव्वुइकरी' अधिकमनोनिर्वृतिकरी-अत्यन्तचित्ताऽऽनन्दकारिणी 'पासाईया दरिसणिज्जा' प्रासादीयदर्शनीयेत्यादिप्राग्वत् । अथास्याः शाखाः परिगणयन्नाह-"जंबूएण सुदंसणाए चउदिसिं' जम्ब्वाः खलु सुदर्शनायाः चतुर्दिशि-दिक्चतृष्टये 'चत्तारि साला पण्णत्ता' शाला:-शाखाः ताः प्रतिदिक् एकै. केति चतस्रः प्रज्ञप्ताः, 'तेसि ' तासां-अनन्तरोक्तानां खलु 'सालाणं' शालानां-शाखानां यो 'बहुमज्झदेसभाए' बहुमध्यदेशभागोऽस्ति, 'एत्थ णं' अत्र-मत्रान्तरे खल उपरितनविडिमाशाखायामित्यर्थः, एकं 'सिद्धाययणे पण्णत्ते' सिद्धायतनं प्रज्ञतम्, इदं च सिद्धायतनं वैताढयगिरिसिद्ध कूटगतसिद्धायतनवद बोध्यम् अस्य मानाद्याह-'कोसं आयामेणं' क्रोशमायामेन-दैर्येण 'अद्धकोसं विक्खभेणं' अर्द्धकोशं विष्कम्भेण विस्तारेण, 'देसूणगं' देशोनं-किञ्चि नीकली हुई शाखाएं है । 'जाव' यावत् चैत्यवृक्ष के वर्णन के समान समग्र वर्णन यहां पर कहलेवें । यह वर्णन कहां तक का ग्रहण करना चाहिए' इसके लिए कहते हैं-अहियमणणिन्वु इकरी' अत्यन्त चित्तको आनंद कराने वाली 'पासाइया दरिसणिज्जा' प्रासादीय दर्शनीय इत्यादि पहले कथनानुसार समझलेवें। ___ अब शाखा की गिनती करते हुए कहते हैं-'जंबूएण सुंदसणाए चउदिसिं' जंबूसुदर्शना की चारों दिशामें 'चत्तारि साला पण्णत्ता' चार शाखाएं कही है 'तेसिं णं सालाणं' वे पूर्वोक्तशोखाओं का जो 'बहुमज्झदेसभाए' ठीक मध्य भाग है 'एत्थ ण यहां पर अर्थात् ऊपर शाखा में "एगे सिद्धाययणे पण्णत्ते' एक सिद्धायतन कहा है । यह सिद्धायतन वैतादयगिरि के सिद्ध कूट में कहा गया सिद्धायतन के जैसा जाने। 'अब उसका मानादि प्रमाण कहते है 'कोसं आयामेणं' एक कोस उसका आयाम नाम लंबाई चोडाई कही है। 'अद्धकोसं विक्खंभेणं' आधा कोसका ચિત્ય વૃક્ષના વર્ણન પ્રમાણે બધું જ વર્ણન અહીંયાં કરી લેવું. એ વર્ણન કયાં સુધીનું मडिया सेवानु छे. ते भाट सू॥२ ४ छे. 'अहियमणणिव्वुडकरी' वित्तरे सत्यत मान ४रावना२ 'पासाइया दरिसणिज्जा' प्रासाहीय शनीय छत्यात ५सा ह्या प्रमाणे અહીંયાં કથન સમજી લેવું. मानी पत्री ४२di 3 छ –'जंबूएणं सुदंसणाए चउदिसिं' पू सुश नानी यारे हिशामा ‘चत्तारि साला पण्णत्ता' यार शामाये। छे. अर्थात् ४२४ हशमां से येन। मथी २२ ॥॥ थाय छे. 'तेसिंणं सालाणं' से शामासाना रे 'बहुमज्झदेसभाए' ५२।१२ वयो। म छ. 'एत्थगं' त्यां मम अर्थात् शापानी ७५२ 'एगे सिद्धाययणे पण्णत्ते' सिद्धायतन उस छ. से सिद्धायतन बैंताय ना सिद्धटमा કહેલ સિદ્ધાયતનના જેવું સમજવું. र तना माना प्रभानु ४थन ४२ छ.-'कोसं आयामेणं' से 15 Real ज ३४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003155
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages798
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size24 MB
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