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________________ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे विकलाः सर्वतो बलवर्जितत्वात् अबला:- शारीरिकशक्तिविकलाः अवीर्याः- वीर्यरहिताः आत्मसमुत्पन्नोल्लासवर्जितत्वात् , अपुरुषपराक्रमाः-पुरुषकारपराक्रमरहिताःसर्वसाधनवर्जितत्वात् अधारणीयं धारयितुमशक्यं परबलमिति शत्रुसैन्योग्ने स्थानुमसमर्था इति कृत्वा अनेकानि योजनानि अपक्रामन्ति पलायन्ते ततः किं कुर्वन्ति इत्याह-'अवक्कमित्ता' इत्यादि। 'अबकमित्ता' अपक्रम्य पलायित्वा 'एगयो मिलायंति' एकतः-एकस्मिन्स्थाने मेलयन्तिएकत्रो भवन्ति, 'मिलाएत्ता' मेलयित्वा-एकत्रीभूय 'जेणेव सिंधू महाणई तेणे । उवाग च्छंति' यत्रैव खिन्धुमेहानदी तत्रैव उपागच्छन्ति 'उवागच्छित्ता' उपागत्य 'वालुया संथारए संथरेंति' वालुकासंस्थारकान् संस्तृणन्ति सिकतामयान् संस्तारकान् कुर्वन्ति 'संथरित्ता' संस्तीर्य 'वालुयासंथारए दुरूहंति' वालुकासंस्तारकान् दूरोहन्ति आरोहन्ति उपविशन्ति 'दुरुहित्ता' दरूद्य आरूह्य उपविश्य 'अट्ठमभत्ताइं पगिण्हंति' अष्टमभक्तानि प्रगृह्णन्ति, 'पगिण्हित्ता' प्रगृह्य 'वालुयासंथारोवगया उत्ताणगा अवसणा अट्ठमभत्तिमा वालुकासंस्तारोपगताः प्राप्तवालुकासंस्ताराः उत्तानकाः ऊर्ध्वमुखशायिनः अवसना:-नग्नाः वस्त्ररहिताः परमातापनाकष्ठमनुभवन्त इत्यर्थः, अष्टमभक्तिकाः दिनत्रयमनाहारिणः ये आपातकिराताः शिरे तक उठा सके, वे बिलकूल शारीरिक शक्ति से हीन हो गये थे। ईसलिये उनसे आत्म समुत्पन्न उल्लास विदाले चुका था, सर्वसाधनों से वर्जित हो जाने के कारण वे पुरुषकार और पराक्रम से इकदम रहित हो चुके थे। और परवल का सामना करना अब सर्वथा अशक्य है इस ख्याल से वे अनेक योजनों तक दूर भाग गये थे। ( अवक्कमित्ता एगयो मिलायति ) भागकर फिर वे एक स्थान पर एकत्रित हुए ( मिलाएत्ता जेणेव सिंधु महाणई तेणेव उवागच्छंति ) और एकत्रित होकर फिर वे सबके सब जहां पर सिन्धु महानदी थी वहां पर आये । (उवाईच्छत्ता वालुआसंथारए संथरेंति) वहां आकरके उन्होंने सिकतामय संतारको को किया, ( संथरित्तो बालया संथारए दुरूहंति ) सिकतामय संथारको को करके किर वे सबके सब अपने बालुकामय संथारों के ऊपर बैठ गये ( दुरूडित्ता अदमभत्ताई पगिण्हंति ) बैठकर वहां पर उन्होंने अष्टम भक्त की तपस्या धारण करलो । (पगिण्हित्ता સામે નએ માથું ઊંચું કરી શકે. તેમની શારીરિક શક્તિ સંપૂર્ણ પણે નાશ પામી હતી. એથી તેમનામથી આત્મસમુત્પન્ન ઉ૯લાસ સમાપ્ત થઈ ચૂક્યા હતા. સર્વસાધનથી વજિત થઈ જવાથી તેઓ પુરુષકાર અને પરાક્રમથી સવિ રહિત થઈ ચૂક્યા હતા. પરબળ સામે લડવું હવે સર્વથા અશકય છે એ વિચારથી તેઓ અનેક ચેજને સુધી કરી નાસી ગયા उता. (अवक्कमित्ता एगयओ मिलायंति) नासीन पछी तमे। मे स्थान मे गया. (मिलापत्ता जेणेव सिंधु महाणा तेणेव उवागच्छति) मन सत्र थन ५० पन्धु मानती त्यो माया. (उवागकिछत्ता वालुआसंथारए संथरेंति) त्यां हेची माय संस्तान०५i. (संरिता बाला संधr Tr કામય સ સ્તારકને બતાવીને પછી તેઓ સવે પોતપોતાના વાલુકામય સંસ્તાર ઉપર બેસી गया. (दुरूहित्ता अट्ठमभसाई पनि ति) साने त्यां भर मटम सतनी त५२या था। ४२. (पणिहित्ता वालुयासंथारोषगया उत्ताणगा अवसणा अदुमभत्तिया ले ते सि कुलदेवया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003154
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages994
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size29 MB
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