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________________ जम्बूद्वीपप्राप्तिसूत्रे प्रतिनिष्क्रामन्ति 'पडिणिक्खमित्ता, विणीयं रायहाणि जाव करेता कारवेत्ताय तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति' प्रतिनिष्क्रम्य च विनीतां राजधानी यावत्पदेनानन्तरोक्तसकलविशेषणविशिष्टां कृत्वा कारयित्वा च तामाज्ञाप्तिं भरतस्य प्रत्यर्पयन्ति । अथ भरतः किं कृतवानित्याह-'तए णं से' इत्यादि । 'तए णं से भरहे राया जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ' ततः खलु स भरतो राजा यत्रैव मज्जनगृहम् स्नानगृहम् तत्रैवोपागच्छति 'उवागच्छित्तामज्जणघरं अणुपविसइ' उपागत्य च मज्जनगृह-स्नानगृहम् अनुप्रविशति अणुपविसितासमुत्तजालाकुलाभिरामे विचित्तमणिरयणकुट्टिमतले रमणिज्जे पहाणमंडसि'अनुप्रविश्य समुक्तेन मुक्ताफलयुक्तेन जालेन गवाक्षेन आकुलो व्याप्तोऽभिरामश्च यः तस्मिन् , विचित्रमणिरत्नमयम् 'कुट्टिमतल' बद्धभूमिका यत्र स तथा तस्मिन् , अत एव रमणीये स्नान मण्डपे 'णाणामणिरयणभत्तिचितसि, ण्हाणपीढ़सि मुहणिसण्णे' नानाविधानां मणीनां के अपने स्वामी की प्रदत्त आज्ञा को विनय पूर्वक स्वीकार किया (पडिसुणित्ता भरहस्सअंतियाओ पडिणिस्वमंति) आज्ञा को स्वीकार करके फिर वे भरत महाराज के पास से वापिस चले आये (पडिणिक्वमित्ता विणीयं रायहाणि जाव करेत्ता कारवेत्ताय तमाणत्तिय पच्चप्पिणंति) वापिस आकर उन्होंने विनीताराजधानी को जिस प्रकार से सुसज्जित मादि करने के लिए भरत राजा ने उन्हों से कहा था उसी प्रकार से पूर्वोक्त विशेषण विशिष्ट करके और उस भरताज्ञा को पूर्ण सधजाने की खवर भरत महाराज के पहुँचादो (तए ण से भरहे राया जेणेव मज्जणघरे, तेणेव उवागच्छइ) अपनो आज्ञा पूर्ण रूप से सम्पादित हो गइ जान कर भरत महाराज स्नान शाला की ओर गये (उवागच्छित्ता मज्जणघरं अणुपविसइ) वहां माकर वे उस स्नान गृह के भीतर प्रविष्ठ हुए (अणुपविसित्ता समुत्ताजालाकुलाभिरामे विचित्तमणिरयणकुट्टिमतले रमणिज्जे पहाणमंडवंसि) प्रविष्ठ होकर वे मुक्ताजाल से व्याप्त गवाक्षों वाले तथा जिसका कुटिमतल अनेकमणिओ एवं रत्नों से खचित हो रहा है ऐसे स्नान मंडप में रखे हुए (हाणपीढंसि जाणामणिभत्तिचित्तंसि) स्नानपीठ पर जो कि अनेक મ્બિક પુરૂષો બહુજ પ્રમુદિત થયા તેઓએ પૂર્વોક્ત રૂપમાં બને હાથની અંજલિ બનાવીને તેને મસ્તક પર જમણી તરફથી ડાબી તરફ ફેરવીને પિતાના સ્વામીએ આપેલી આજ્ઞા सविनय स्वीतरी. (पडिसुणित्ता भरहस्स अंतियाओ पडिणिक्खमंति) माज्ञा वारीन पछी ते भरत मा२।४ पासेथी ५।छ। माया (पडिणिक्खमित्ता विणीयं रायो हाणि जाव करेत्ता कारवेत्ता य तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति) पाछा मावान तेमणे भरतराज २ शत આદેશ આપેલ તે મુજબ વિનીતા રાજધાનીને સારી રીતે સુસજજ કરીને અને કરાવીને तमाम पूर्ण थवानी २ भरत महा पासे पडायास (त एणं से भरहे राया जेणेव तेणेव उवागच्छइ) पाताना माज्ञानु सम्पूपरीत पासन यु छ, से सूचना समजते मरत ना२।०४ तानशा त२३ गया. (उवागच्छित्ता मज्जणधरं अणुपविसइ) i ने तेसो त स्नानमा प्रविष्ट थया. (अणुपविसित्ता समुत्ताजालाकुलाभिरामें विचित्तमणिरयणकुट्टिमतले रमणिज्जे ण्हाणमंडवसि) प्रविष्ट थानत भुताna. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003154
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages994
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size29 MB
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