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________________ ४३४ जम्बूद्वोपप्रज्ञप्तिसूत्रे अङ्गाङ्गानि प्रत्येकमङ्गानि सर्वाङ्गास्थोनि गृह्णाति तत्र 'केइ' केचित् देवाः 'जिणभत्तीए' जिनभक्त्या-जिनानुरागेन गृह्णाति 'केइ केचित् देवाः 'जीयमेयं' जीतमेतत्-जीताख्यः कल्पोऽयम् 'इतिक?' इति कृत्वा इति बुध्वा गृह्णाति 'केइ' केचित् ‘धम्मोत्ति कटु' अस्माकमयं धर्म इति कृत्वा इति वुध्वा 'गेहंति' गृह्णाति ॥सू०५०॥ अथास्थिसंचयनविध्यनन्तरजातं विधिमाह तए णं से सके देविदे देवराया बहवे भवणवइ जाव वेमाणिए देवे जहारिहं एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया. सव्वरयणामए महइमहालए तओ चेइयथूभे करेह, एगं भगवओ तित्थयरस्स चिइगाए एगं गणहरचिइगाए एगं अवसेसाणं अणगाराणं चिइगाए, तएणं ते बहवे जाव करें ति, तएणं ते भवणवइ जाव वेमाणिया देवा तित्थयरस्स परिणिव्वाणमहिमं करें ति, करित्ता जेणेव नंदीसखरे दीवे तेणेव उवाच्छंति, तएणं से सके देविंदे देवराया पुरच्छिमिल्ले अंजणगपब्बए अट्ठाहियं महामहिमं करेइ, तएणं सक्कस्स देविंदस्स देवरायस्स चत्तारि लोगपाला चउसु दहिमुहगपवएसु अट्ठाहियं महामहिमं करेंति, ईसाणे देविंदे देवरायो उत्तरिल्ले अंजणगे अट्ठाहियं महामहिमं करें ति चमरो य दाहिणिल्ले अंजणगे तस्स लोगपाला दहिमुहगपब्बएसु बली पच्चथिमिल्ले अंजणगे तस्स लोगपाला दहिमुहगेसु, तएणं ते बहवे भवणवइवाणमंतर जाव अट्ठाहियाओ महा-महिमाओ करेति करित्ता जेणेव साइं २ विमाणाई जेणेव साई २ भवणाई जेणेव साओ २ सभाओ सुहम्माओ जेणेव सगा २ माणवेगो चेइयखंभा तेणेव लिया, इनमें "केइ" कितनेक देवोंने 'जिणभत्तीए' जिनेन्द्र की भक्ति से 'केइ जीयमेय इति. कटु' कितनेक देवों ने यह जीत नामका कल्प है इस अभिप्राय से "केइ धम्मो ति कट्ट गेण्हंति' कितनेक देवों ने हमारा यह धर्म है इस ख्याल से उन हड्डियो को उठाया ॥सू०५०॥ यनी अस्थियान-साधी. समांथा (केइ) मा वामे "जिणभत्तीए" निन्दनी मतिया "केइ जोतमेयं इति कटु" ais वाले भातनाम ४६५ छ मा भनिभायथा कह धम्मोत्ति कटूटु गेण्हंति" ४ तुवाच्य सभारी मा २४ छे, यासपी मास्थએને ઉઠાવ્યા. સૂત્ર, ૫ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003154
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages994
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size29 MB
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