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________________ प्रकाशिका टोकाद्वि.वक्षस्कार सू.४३ऋषभस्वामिन केवलज्ञानोत्पत्यनन्तरकार्यनिरूपणम्३९१ इति । भगवतः साधुसंख्यामाह-'उसभस्स ण अरहओ कोसलियस्स उसभसेणपामोक्खाओ चुलसीई समणसाहस्सीओ' ऋषभस्स खलु अर्हतः कोशलिकस्य ऋषभसेन प्रमुखाश्चतुरशीतिः श्रमणसाहस्यः चतुरशीतिसहस्रसंख्यकाः श्रमणाः 'उक्कोसिया समणसंपया होत्था' उत्कृष्टाः श्रमणसम्पदः अभवन् । साध्वी संख्यामाह-'उसमस्स णं अरहओ कोसलियस्स बंभी सुन्दरी पामोक्खाओ तिण्णि अज्जियासयसाहस्सीओ' ऋषभस्य खलु अर्हतः कौशलिकस्य ब्राह्मी सुन्दरी प्रमुखाः तिस्रः आर्यिकाशतसाहस्थ्यः त्रिलक्षसंख्यकाः उत्कृष्टाः साध्व्यः 'उक्कोसिया अज्जियासंपया होत्था' उत्कृष्टाः आर्यिकासम्पदोऽभवन् , श्रावकसंख्यामाह-'उसभस्स णं अरही कोसलियस्स सेज्जंसपामोक्खाओ तिणि समणोवासगसयसाहस्सीओ' मृषभस्य खुलु अर्हतः कौशलिकस्य श्रेयांसप्रमुखाः तिस्रः श्रमणोपासकसाहस्त्र्यः 'पंच य साहस्सीओ' पञ्च साहस्यश्च = पञ्चसहस्राधिकलक्षत्रयपरिमिता श्रावकाः 'उक्कोसिया समणोवासगसंपया होत्था' उत्कृष्टाः श्रमणोपासकसम्पदोऽभवन् । श्राविकासंख्यामाह-'उसभस्स णं अरहओ कोसलियस्स सुभदा पामोक्खाओ पंच समणोवासियासयसाहस्सीओ-चउप्पण्णं च सहस्सा' ऋषभस्य खलु अर्हतः कोशलिकस्य सुभद्राप्रमुखाः पञ्च श्रमणोपासिकाशतसाहस्यः चतुष्पञ्चाशच्च साहस्त्र्या-चतुष्पञ्चाशत्सहखाधिकपञ्चलक्षसंख्यकाः 'उक्कोसिया समणोवासिया संपया लिक ऋषभ प्रभु के ८४गण एवं ८४ गणधर हो गये; ऐसा नियम है कि "जावइया जस्स गणा तावइया गणहरा तस्स" कि जिसके जितने गण होते हैं उतने उनके गणधर होते हैं, भगवान आदिनाथ के ८४ गण थे इसी कारण इनके ८४ गणधर कहे गये हैं, "उसभस्स णं अरहो कोसलियस्स उसभसेणपामोक्खाओ चुलसीइ समणसाहसीओ उक्कोसिया समणसंफ्या होत्था" इन प्रभु के ऋषभसेन आदि ८५ हजार श्रमण थे, "उसभस्स णं अरहओ कोसलियस्स बंभी सुन्दरी पामोक्खाओ तिण्णि अज्जिया सयसाहस्सोओ उक्कोसिया अज्जिया संपया होत्था" ब्राह्मी सुन्दरी आदि ३ तीन लाख अर्यिकाएँ थी, "उसभस्स णं अरहओ कोसलियस्स सेज्जस पामोक्खाओ तिण्णि समणोवासगसयसाहस्सीओ पंच य साहस्सीओ उक्कोसिया समणोवासगसंपया होत्था" तीन ३ लाख ५ हजार श्रेयांसप्रमुख श्रावक थे, "उसमस्स णं अरहओ कोसलियस्स सुभद्दा पामोक्खाओ पंच समणोवासियासयसाहस्सीओ चउपण्णं च सहस्सा उक्कोसिया ८४ गधरे। २४ गया, मेवा नियम छ "जावईया जस्स गणा तावइया गणहरा तस्स" જેમને જેટલા ગણે હોય છે, તેમને તેટલા ગણધરે હોય છે. ભગવાન આદિનાથને ૮૪ वारता मेथी नभने ८४ शोध वामां मावस छ. "उसमस्सण आहओ कोसलियस्स उसभसेणपामोक्खाओ चुलसीई समणसाहस्सीओ उक्कोसिया समणसंपया होत्था से प्रभुने *पलसेन बोरे ८४ हुनर श्रमणे। डा. 'उसमस्स ण अरहो कोसलियस्स बंभी सुदरी पामोखाओ तिणि अजियासयसाहस्सीओ उक्कोसिया अज्जिया संपया होत्था'माझी सुहरी विगे३३yाय मायामाती. "उसमस्सण अरहउनो कोसलियस्स सेज्जंसपामोक्खाओ तिन्नि समणोवासगसयसाहस्सीओ पंच य साहस्सीओ उक्कोसिया समणोवासगसंपया होत्था' या पाय श्रेयांस विगेरे श्राप । ता. 'उसभस्स ण अरहओ कोसलियस्ल सुभद्दापामोक्खाओ पंचसमणोवासिया सयसा Emainctruurmuse urwecorammaanemavaNA Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003154
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages994
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size29 MB
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