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________________ देड प्रकाशिका टीका-द्वि. वक्षस्कार सू. ३८ कुलकरताप्रकारकथनम् परिभासणाउ पढमा मंडलबंधत्ति होइ बीया य । चारग छवि छेयाई भरहस्स चउविदा नीई ॥१॥ ' छाया-परिभाषणा तु प्रथमा मण्डलबन्ध इति भवति द्वितीया च । . चारके छबिच्छेदादि, भरतस्य चतुर्विधा नीतिः ॥१॥इति॥ ॥९०३८॥ इत्थं पञ्चदशस्य कुलकरस्य ऋषभस्वामिनः चतुर्दश कुलकरसाधारण कुलकरत्व मुपदर्य सम्प्रत्यस्य असाधारणपुण्यप्रकृत्युदयसमुदभूत् त्रिजगज्जनपूजनीयतां प्रदर्शयितुं यथाऽस्मादेव लोके विशिष्ट धर्माधर्म संज्ञाव्यवहारा प्रवृत्ता अमूवन्निति दर्शयति____ मूलम्-णाभिस्स ण कुलगरस्स मरुदेवाए भारियाए कुच्छिसि एत्य णं उसमे णामं अरहा कोसलिए पढमराया पढमजिणे पढमकेवली पढमतित्थयरे पढमधम्मवरचाउरंतचकवट्टी समुप्पज्जित्था । तएणं उसमें अरहो कोसलिए वींसं पुव्वसयसहस्साई कुमारवासमझे वसइ, वसित्ता तेवढिं पुव्वसयसहस्साई महारोयवासमझे वसइतेवट्टि पुवसयसहस्साई महारायवासमझे वसमाणे लेहाइयाओ गणियप्पहाणाओ सउणस्यपज्जवसाणाओ बावेत्तरि कलाओ चोसर्हि महिलागुणे सिप्पसयंच क म्माणं तिण्णि वि पयाहियाए उवदिसइ, उवदिसित्ता पुत्तसय रज्जसए अभिसिंचइ अभिसिंचित्ता तेसीई पुव्वसयसहस्साई महारायवासमझे वसइ वसित्ता जे से गिम्हाणं पढमे मासे पढमे पक्खे चित्तबहुले तस्स णं चित्तबहुलस्स णवमीपक्खेणं दिवसस्स पच्छिमे भागे चइसा हिरणणं चइत्ता सुवण्णं चइत्ता पुरं चइत्ता कोसं कोट्टागारं चइत्ता बलं चइता काहणं चइत्ता पुरं चइत्ता अंते उरं चइत्ता विउलधणकणगरयण मणिमोत्तिय संख सिलप्पवालरत्तरयणसत्तसारसावइज्जं विच्छड्डइत्ता विगोवइत्ता दायं दाइया णं परिभाएत्ता सुदंसणाए सीयाए सदेवमणुयासुराए परिसाए समणुगम्ममाणमग्गे संखियचक्कियणंगलिय मुहमंगलिय पूसमाणब पद्धमा णग आइक्खगलंखमंख घंटियगणेहिं ताहिं इट्ठाहिं कताहिं पियाहि मणु तदुक्तबू-"परिभासणा उ पढमा मंडलबंधत्ति होइ बीया य । चारग छवि छेयाई भरहस्स चउम्विहा नीई ॥१॥३८॥ परिभासणा उ पढमा मंडलबंधत्ति होइ बीयाय । चारग छवि छेयाई भरहस्स चउन्विहा नीई ॥१॥ सूत्र ॥३८॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003154
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages994
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size29 MB
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