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________________ २७० जम्बूद्वीपप्राप्तिसूत्रे काले वेरानुबन्धकारणाभावादरिप्रभृतयो नासन्नितिभावः । पुनीतमस्वामी पृच्छति-'अस्थि णं भंते ! भर हे वासे मित्तेइवा' हे भदन्त ! अस्ति खलु तस्यां समायां भरते वर्षे मित्र मिति वा, मित्रं स्नेही 'वयंसाइवा' वयस्य इति वा, ! वयस्यः समानवयस्कोऽतिशयस्नेहवान् , 'णायएइ वा' ज्ञातक इतिवा ! ज्ञातकः स्वज्ञातीयः, यद्वा - एकत्र संवासादिना परिचितः 'संघाडिएइवा' संघाटिक इति वा !, संघाटिकः सहचरः, 'सहाइ वा सखा स मप्राणः "समप्राणः सखामतः" इत्यभिधानात् सहासनपानशीलः सातिशयस्नेहीत्यर्थः, 'सुहीइ चा' सुहदिति वा ! सुहृत् सकल कालमप्रतिकूलो हितोपदेशदायकश्चेति, 'संग एत्ति वा' साङ्गतिक इति वा ? साङ्गतिकः समानकार्यशीलत्वेनैकत्रसंगमनशील इति । भगवानाह- 'हंता अस्थि !' हन्त ! गौतम ! अस्ति मित्रादिषु प्रत्येकम् , च पुनः ‘णो' नैव ते सिं' तेषां परस्परं तिव्वे' तोत्रं सातिशय 'रागबन्धणे' गगबन्धनं प्रेमबन्धः 'समु पज्जइ' समुत्पद्यते । सू० २८॥ हे श्रमण आयुष्मन् ! वे मनुष्य वेसनुवन्ध से दूर रहे हुए होते हैं। इसका कारण यह है कि उसकाल में वैर।नुवध के कारणों का अभाव रहता है अतः वहां अरि आदि कोई किसी का नहीं होता है। अस्थि णं भते ! भरहे वासे मित्ताई वा, वयंलाइ वा णायएइ वा संघाडिएइ वा सहाइ वा, सुहोइ वा संगएत्ति वा" हे भदन्त ! उस काल में इस भरतक्षेत्र में क्या कोई स्नेही होता है ? क्या कोई वयस्य--समान वयवाले के साथ स्नेह रखने वाला साथी होता है ? क्या कोई स्वजातिय होता है ? अथवा एक जगह रहने आदि से क्या कोई परिचित-परिचयवाला बन्धु होता है ? क्या कोई संघाटिक-सइचर-साथ साथ रहनेवाला होता है ? क्या कोई सखा "समप्राण: खा मतः" के अनुसार समान प्राणों वाला होता हैं साथ उटने बैठने वाला साथ वाने पीने वाला जो सातिशय स्नेहो होता है उसे सखा कहा गया है, क्या कोई सुहृद् सर्वदा अप्रतिकूलाचरण वाला और हितोपदेश देनेवा ठा होता है ? क्या कोई साङ्गतिक होता है ? सदा किसी एक हो कार्य में लगा रहने वाला होता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं "हता, नथी. 3 वगय वेशगुसया ण ते मणुया पण्णत्ता समणाउसो, श्रम मायुष्मन ! ते મન વૈરાનુઘથી પર હોવે છે. એનું કારણ એ છે કે તે કાળમાં વૈરાનુબન્ધના કારણેને समान २ . मेथी त्यां 55 नु मारे थतु नथी. 'अस्थि णं भंते ! भरहे वासे । मित्ताइवा वयंलाइ चा णायएइ वा संघाडिएइ वा सहाइ वा, सुहाइ वा संगपत्ति વા” હે ભદન્ત ! તે કાળમાં આ ભરત ક્ષેત્રમાં શું કઈ નહી હોય છે ? શું કોઈ વયસ્ય સમાન વયળાઓની સાથે નેહ ૨. બના૨ સાથી-હેય છે ? કાઈ સ્વજાતીય હોય છે ? अथवा शुई घाट-सय२-साथे २२नार हाय छ ? ५॥ शुई सभा 'सम प्राणः सखामतः” सेयन भुभ समान प्रापवाणे हा छ ? साथे २९ना२, साथे मानार પીનાર જે સાતિય નહી હોય છે, તેને સખા કહેવામાં આવે છે. શું કેઈ સુહદ સદા અપ્રકિલાચરણ મળે અને હિતોપદેશ આપનાર હોય છે ? શું કોઈ સાંગતિક હોય છે ? શું सब से अयमा प्रवृत्त २नार होय छ ? सेना समां प्रभु छ: "हंता ! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003154
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages994
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size29 MB
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