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________________ २३० जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे णिव्वण सुकुमाल मउय मंसल अविरल समसंहिय मुजाय वट्टपीवरणिरंतरोरु' कदलो स्तम्भातिरेक संस्थित निव्रण सुकुमार मृदुक मांसलाविरलसमसंहितसुजातवृत्तपीवर निरन्तरोरवः कदली--रम्भा तस्या यः स्तम्भः-काण्डम् तस्मादतिरेकेण अतिशयेन सस्थितं संस्थानं ययोस्ते कदलीस्तम्भातिरकसंस्थिते निव्रणे विस्फोटकादि क्षतरहिते सुकुमा रमृदुके सुकुमारेषु मृदुषु मृदुके तथा अतिकोमले मांसले पुष्टे अविरले परस्परासन्ने समे तुल्यप्रमाणे सहिके क्षमे सुनाते मुनिष्पन्ने वृत्ते वर्तुले पीवरे उपचिते निरन्तरे पर स्परनिर्विशेषे ऊरू यासां तास्तथा, 'अट्ठावय वीइय पट्ट संठिय पसत्थ विच्छिण्णपिहुल सोणी' अष्टापदवीतिक प्रष्ठ संस्थित प्रशस्तविस्तीर्ण पृथुक श्रोणयः वोतिकः विगता ईतयो यस्य स वीतिकाः घुणाधुपद्रवरहितः स चासौ अष्ठापदः-चूतफलकविशेषः अत्र विशेषण वाचकपदस्य परप्रयोगः प्राकृतत्वात्, तद्वत् प्रष्ठसंस्थिता प्रधान संस्थानोपेता प्रशस्ता लाध्या विस्तीर्णविपृथुला-अतिस्थूला श्रोणिः कटिदेशो यासां तास्तथा तथा 'वयणायामप्पमाण दुगुणिय विसालमंसल सुबद्ध जहनवरधारिणीओ' वदनायामप्रमाणद्विगु ठिय निव्वण सुकुमालमउय म सल अविरल समसंहिय सुजाय वट्ट पीवर णिरंतरोरु" इनके सुजानु मण्डल नितरां प्रमाणोपेत होते हैं, और मांसल होने से अनुपलक्ष्य होते है तथा इनको संधियां दृढ़स्नायुओं से अच्छी तरह बद्ध रहती है इनके दोनों उरु कदली के स्तम्भ के जैसे संस्थान से भो अधिक सुन्दर संस्थान वाले होते हैं, विस्फोटक आदि के व्रण से रहित होते हैं, सुकुमार पदार्थों से भी ये अधिक सुकुमार होते हैं अतिकोमल होते हैं, मांसल -पुष्ट होते हैं, अविरल-परस्पर में जुड़े हुए से अर्थात् सट्टे हुए से रहते हैं, सम-तुल्य प्रमाण वाले होते हैं. सहित-सक्षम होते हैं, अच्छे रूप में उत्पन्न हुए होते हैं, वृत्त-वर्तुल-होते है, पीवर-मांस से भरे हुए रहते हैं. एवं निरन्तर-अंतर रहित होते हैं, "अट्ठावय वोइयपट्ठसंठियपसत्थविच्छिण्णपिहुलसोणी, वयणायामप्पमाण दुगुणिय विसालमंसल सुबद्ध जहणवर धारिणीओ, वज्जविराजियपप्तत्थ लक्खणनिरोदरअति सुभम हावाथी अ५ डाय छे. “सुणिम्मिय सुगूढ सुजण्णुमंडल सुबद्धसंधीओ, कयली खंभाइरेक संठिअणिवण सुकुमाल मउअ मंसल अविरल समसंहिअ सुजायवट्ट पीवर णिरं तरोरु" मनु सुजनुम अतीव सप्रमाण डाय छ, भने भांस पायी गनुपलक्ष्य હોય છે. તેમજ એમની સંધિઓ દૃઢ સ્નાયુઓથી સારી રીતે આબદ્ધ રહે છે. એમના બન્ને ઉરુએ કદલીને સાંભના સંસ્થાન કરતાં પણ વધારે સુંદર સંસ્થાનવાળા હોય છે. વિસ્ફોટક વગેરના ત્રણથી રહિત હોય છે. સુકુમાર પદાર્થો કરતાં પણ વધારે એઓ સુકુમાર હોય છે. અતિ કોમળ હોય છે. માંસલ-પુષ્ટ હોય છે. અવિરલ એક બીજા ને અડીને રહે છે. સમતુલ્ય પ્રમાણ વાળા હોય છે સહિક–સક્ષમ હોય છે. સારા રૂપમાં ઉત્પન્ન થયેલા હોય છે. वृत्त-वतु डाय छे. पी५२ पुष्ट २७ छे. तभ४ सतत मत२ विलीन डाय छ "अट्ठावय. वीइय पट्ट संठिअ पसत्थ विच्छिण्ण पिहुलसोणी वयणायामप्पमाणदुगुणिया विसाल मंसल सुबद्धजहणवरधारिणीओ वज्जविराजि अपसस्थ लक्खण निरोदरतिवलियवलि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003154
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages994
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size29 MB
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