SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 167
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकाशिका टीका सू. २० कालस्वरूपम् च दुष्षम सुषमा अधिक दुष्पमाप्रभावाऽल्पसुषमा प्रभावा, तद्रूपः कालो दुष्षममुषमा कालः ४, 'दुस्समाकाले' दुष्षमाकालः तत्र दुष्षमा प्रागुक्तस्वरूपा तद्रूपः कालः ५, 'दुस्समदुस्समकाले' दुष्पमदुष्षमाकाल: दुष्पमा प्रागुक्तस्वरूपा सा साचो दुष्षमा 'अत्यन्तदुष्पमा तद्रूपः कालस्तथा ६, इत्यवसर्पिणीकाल भेदाः १। __ अथोत्सर्पिणी कालभेदं पृच्छति 'उस्सप्पिणिकाले णं भंते कइविहे पण्णत्ते' उस्स पिणीकालः खलु भदन्त कतिविधः प्रज्ञप्तः भगवानाह-'गोयमा छविहे पण्णत्ते' हे गौतम उत्सर्पिणी कालः षइविधः प्रज्ञप्तः 'तं जहा-दुस्समदुस्समाकाले' तद्यथा दुष्षम दुष्पमाकालः जाव यावत् यावत्पदेन 'दुष्षमाकालः २, दुष्पमसुषमाकाल: ३, सुषमद्वितीयकाल जिसका नाम सुषमा है यह भी शोभन वर्षों वाला होता है. “सुषमदुप्पमाकाल" यह तृतीय काल है. इस काल में अधिकरूप से प्रथम तो शोभन वर्ष होते हैं, और बाद में दुष्ट वर्ष अल्प होते हैं. तात्पर्यकहने का यही है कि इस तृतीय आरक में सर्वप्रथम सुषमा का प्रभाव होता है और अन्यरूम में दुष्षमाओं का प्रमाव रहता है. चतुर्थ आरक दुष्षम सुषमाकाल हैं-इस काल में अधिकरूप में दुष्पमाओं का प्रभाव रहता है और अल्परूप में सुषमाओं का प्रभाव रहता है. पांचवां आरक दुष्षमाकाल नामका है इस काल में समस्त वर्ष दुःख दायक ही होते हैं, छट्ठा भेद दुष्पमा काल हैं. इनमें जितने भो वर्ष होते हैं-अर्थात् २१ हजार वर्ष होते हैं वे सब अत्यन्त दुष्ट ही होते हैं. एक भी समय इसमें शोभन नहीं होता है उस्सप्पिणी काले णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते" हे भदन्त ! उत्सर्पिणीकाल कितने प्रकार का कहा गयो है उत्तर में प्रभुश्री कहते है."गोयमा! छविहे पण्णते" हे गौतम! उत्सपिणो काल ६ प्रकार का कहा गया है'ते जहा जैसे-"दुस्समदुस्समाकाले' १ जाव सुसमसुसमाकाले ६" दुष्षम दुष्षमाकाल, यावत्दुष्षमाकाल२, दुष्षमसुषमाकाल ३,सुषमदुष्षमाकाल४, सुषमाकाल ५ और सुषमसुषमाकाल ६ । કહેવામાં આવેલ છે. કેમકે એજ એકાન્ત સુખસ્વરૂપ હોય છે. દ્વિતીય કાળ જેનું નામ સુષમાં छ ते ५५ शासन वा हाय छे. “ सुसमदुस्समा काले' मा तृतीय छे. मा કાળમાં અધિક રૂપથી પ્રારંભમાં તે શેભન વર્ષો હોય છે અને ત્યાર બાદ અયરૂપમાં દુષ્ટ વર્ષો હોય છે. તાત્પર્ય આ પ્રમાણે છે કે આ તૃતીથ આરક માં સર્વ પ્રથમ સુષમાને પ્રભાવ હોય છે અને અલપરૂપમાં દુષમાઓનો પ્રભાવ રહે છે. ચતુર્થ આરક દુષમ સુષમા કાળ છે. આ કાળમાં અધિક રૂપમાં દુષમાઓનો પ્રભાવ રહે છે. અને અલ્પરૂપમાં સુષમાઓને પ્રભાવ રહે છે. પાંચમે આરક દુષમા કાળ નામે છે. આ કાળમાં સમસ્ત વર્ષ દુખદાયક જ હોય છે. છઠ્ઠો પ્રકાર દુષમ દુષમા કાળ છે. એમાં જેટલા વર્ષો હોય છે. એટલે કે ૨૧ હજાર વર્ષ હોય છે તે સર્વે અતીવ દુષ્ટ હે છે. એક પણ સમય આમાં શેભન થત नथी. 'उस्सप्पिणी काले ण भंते ! कइबिहे पण्णत्ते" Gajsthan प्रश्न वामां आवे छ ? उत्तरमा ५९ ४ छ-'गोयमा ! छव्धिहे पण्णत्ते' गीतम! Galleg] ४ ६ ने। वामां मावेश छ, 'तं जहो' रेम है 'दुस्सम दुस्समाकाले १ जाव सुसमसुसमाकाले ६' दुप्पमपमा १. यावत दुषमा २. मनुषमा २० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003154
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages994
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy