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जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे पद्मवरवेदिकया 'इक्केण वणसंडेणं' एकेन वनपण्डेन च-'सब्बओ समंता संपरिक्खिते' सर्वतः समन्तात् संपरिक्षिप्त-परिवेष्टितमिति । अनयोर्दै र्यविस्तार प्रमाणं वर्णनं च जम्बूद्वीपजगतीगतपमवरचेदिकावनषण्डयोरिव बोध्यम् । एतदेव सूचयितुमाह 'पमाणं वण्णगो दोण्ह पि' प्रमाणं वर्णको द्वयोरपीति ।
__ अथ गौतमः पुनः पृच्छति--'वेयड्ढस्सणं भंते' इत्यादि । 'वेयड्ढस्स णं भंते ! पब्बयस्स सिहरतलस्स केरिसए आयारभावपडोयारे पण्णत्ते । हे भदन्त ! बैताव्यस्य खलु पर्वतस्य शिखरतलस्य कोदृशकः आकारभावप्रत्यवतार:-स्वरूपपर्यायप्रादुर्भावः प्रज्ञप्तः ? भगवानाह-'गोयमा ! बहुसरमणिजे भूमिभागे पण्णत्ते' हे गौतम ! बहुसमरमणीयः भूमिभागः प्रज्ञप्तः, 'से जहाणामए अलिंगपुक्खरेइवा जाव णाणाविह पंचवण्णेहिं मणीहि उवसोभिए जाव वावीओ पुक्खरणीओ जाव वाणमंतरा देवा य देवीओ य आसयंति जाव भुंजमाणा विहरंति' स यथानामकः आलिङ्गपुष्कर इति वा पश्चवणे मणिभिरुपशोभितो यावद् वाप्यः पुष्करिण्यो यावद् व्यन्तरा देवाश्च वेइयाए इकोणं वगसंडे गं सत्रभो समंता संपरिकिखते पभाणं वग्णगो दोण्हंपि " वह शिवरतल एक पद्मवर वेदिका और एक वनषण्ड से चारों ओर से घिरा हुआ है. इन दोनों को लम्बाई चौडाई का प्रमाण तथा इनके सम्बन्ध का वर्णन जम्बूद्वोप की जगती पद्मवर वेदिका और वनषण्ड के वर्णन जैसा हो है।
___ "वेयड्ढस्स णं भंते ! पव्वयस्स सिहरतलस्स केरिसर आगारभावपाडोयारे पण्णत्ते" हे भदन्त ! वैताढ्य पर्वत के शिखर का आकारभाव प्रत्यवतार -स्वरूप कैसा कहा गया है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं "गोयमा ! बहुसमर-मणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते" हे गौतम ! शिखर तलका जो भूमिभाग है वह सम एवं रमणीय कहा गया है, ' से जहोणामए आलिंगपुक्खरे इवा णाणाविह पंच वण्णोहिं मणोहिं उवसोभिए जाव वाकोओ पुक् वरिणोओ जाव वाण-मंतर देवाय देवीओ य आसयंते जाव भुंज माणा विहरति" जैसा बहुसमरमणीय मृदंग का मुख पुट होता है इत्यादि रूप से तथा यावत् नाना प्रकार के पंच वर्णोपेत मणियों से वह संडेणं सवओ समता संपरिक्खित्ते पमाणं वण्णओ दोण्हंपि" ते शिमरत मे ५વરેવેદિકા અને એક વનખંડથી ચારે તરફથી ઘેરાયેલું છે. એ બન્નેની લંબાઈ ચેડાઈનું પ્રમાણ તેમજ એમના સંબંધનું વર્ણન જ બુદ્વીપની જગતીની પદ્મવરવેદિકા અને વનખંડના वर्णन ४ छे. 'वेयड्ढस्स णं भंते ! व्वयस्स सिहरतलस्स केरिसए आगारभाववडोयारे पण्णते" है महन्त ! वैतादय पतन। शियन मारमा प्रत्यक्ता२-२१३५)
। छ.? सेनामा प्रभु . "गोयमा ! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते" है गीतम ! शिप तसनी ? भूमिमा छ त समसणीय छे. “से जहाणामए आलिंग पुक्खरेइवा जाव णाणाविह पंचवण्णेहिं मणीहि उवसोभिए जाव वावीओ पुक्खरिणीओ जाव वाणमंतरा देवाय देवीओ य आसयति जाव भुजमाणा विहरंति" भृ भुम ५८
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