SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 100
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जम्बूद्वोपप्रज्ञप्तिसूत्रे इत्यादि-महर्द्धिकादि पदव्याख्याऽष्टमसूत्रे विजयदेववद् विज्ञेया । तो देवौ तत्र 'कयमालएचेव कृतमालकस्त मिस्रगुहाधिपतिः, 'नट्टमालएचेव' नृत्तमालकः खण्डप्रपातगुहाधिपतिश्चैव । ___ अथात्र विद्याधरश्चेणिद्वयं प्ररूपयितुमाह-'तेसि णं वणसंडाणं' तयोः-पूर्वोक्तयोः खलु वनपण्डयोः 'बहुसमरमणिज्जाओ' बहुसमरमणीयात-अत्यन्तसमतलात् अतएव रमणीयात् सुन्दरात् 'भूमिभागाओ' भूमिभागात् भूमिभागप्रदेशात् 'वेयड्ढस्स-पव्ययस्स उभओ पागि' वैताठ्यस्स पर्वतस्य उभयोः द्वयोः पार्श्वयोः 'दस दस जोयणाई उड्डे' दश दश योजनानि ऊर्ध्वम्-ऊपरितनभागम् 'उप्पइत्ता' उत्पत्य गत्वा तत्थणं दुवे विजाहरसेढीओ' अत्र इह खलु द्वे विद्याधरश्रेण्यौ विद्याधराणां श्रेण्यौ आश्रयभूते पती पत्ताओ' प्रज्ञप्ते, तयोरेका दक्षिणभागे अपरा चोत्तरभागे ते द्वे कीदृश्यौ ? इत्याह-पाईणपडीणाययाओ' प्राचीन प्रतीचीनायते-पूर्वपश्चिमयोदिशोरायते दीर्घे, "उदोण दाहिण वित्थिण्णाभो' उदीचीन दक्षिण विस्तीर्णे-उत्तरदक्षिणयोर्दिशोविस्तीर्णरूप महा ऋद्धि के स्वामी हैं महाद्युति वाले हैं महा बल वाले हैं महा यशवाले हैं महासुखशाली हैं, महाप्रभाबवाले है, इन पदों की व्याख्या विजयदेव की तरह अष्टम सूत्र में की जाचुकी है, इनकी प्रत्येक की स्थिति १-१ पल्योपम की हैं "तं जहा "-कयमालए चेव, नट्टमालए चेव" इन देवों के नाम कृतमालक और नृत्यमालक हैं इनमें जो कृतमालकदेव है वह तमिस्रगहा का अधिपति है । "तेसिणं वणसंडाणं बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ" इन वनघंडो के भूमिभाग बहुसम हैं और बहुत रमणीय हैं । "वेयड्ढस्स पव्वयस्स उभओ पासिं दस दस जोयणाई उड्ढे उप्पइत्ता एत्थणं दुवे विज्जाहरसेढीयो पण्णत्ताओ" वैताढ्य पर्वतके दोनों पार्श्वभागों में दस योजन ऊपर जाकर विद्याधरों की दो श्रेणियाँ कही गई हैं "पाईणपडीणाययाओ उदीणदाहिणवित्थिण्णाओ" ये विद्याधरश्रेणियां पूर्व से पश्चिमतक लम्बी हैं और उत्तर से पलिओवमठिईया परिवसति समाथी १२४ शुभ मे वह छ. ससा विमान પરિવાર આદિ રૂપથી મહાઋદ્ધિના સ્વામી છે. મહાતિવાળા છે, માબળવાન છે. મહાયશ વાળ છે. મહાસુખશાલી છે, મહા પ્રભાવ સંપન્ન છે. આ પદની પાખ્યા અષ્ટમ સૂત્રમાં વિજયદેવની જેમ કરવામાં આવી છે. આમાંથી દરેકની સ્થિતિ ૧–૧ પલ્યોપમ જેટલી છે. "तं जहा-कयमालए चेव जट्टमालए चेव" । हेवानानाभ। इतमान सने नृत्याभास છે. આમાંથી જે કૃતમાલક દેવ છે તે તમિસગુફાને અધિપતિ છે, અને નૃત્યમાલક છે તે अपात शुशन। मविपति छे. "तेसिण वणसंडाणं बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ" से बनाना भूमिमा असम छ भने भूम २भएीय छे. “वेयइढस्स पव्ययस्त उभओ पासिं दस दस जोयणाई उड्ढ़ उप्पइत्ता पत्थण दुवे विज्जाहरसेढीओ पण्णसाओ" શૈતાઢય પર્વતના બન્ને પાર્શ્વભાગોમાં દશ એજન ઉપર જઈને વિદ્યાધરોની બે શ્રેણી . "पाईण पडीणाययाओ उदीणदाहिणवित्थिण्णाओ" से विद्याधर श्रेणीय। पूर्वथा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003154
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages994
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy