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(११) माणिकचन्द्रजैनग्रन्थमाला। यह ग्रन्थमाला स्वर्गीय दानवीर सेठ माणिकचन्द हीराचन्दजीके स्मरणार्थ और जैनसाहित्यके उद्धारार्थ निकाली गई है।
इसमें दिगम्बर जैन सम्प्रदायके अलभ्य और दुर्लभ संस्कृत प्राकृत ग्रन्थ प्रकाशित होते हैं।
इसके द्वारा प्रकाशित हुए ग्रन्थ केवल लागतके मूल्य पर बेचे जाते हैं, जिससे उनका मिलना सर्व साधारणके लिए सुलभ हो जाय।
अभीतक इस मालामें १८ ग्रन्थ निकल चुके हैं । यदि धर्मात्मा भाइयोंसे बराबर सहायता मिलती रही तो इसके द्वारा सैकड़ों अपूर्व प्रन्थोंका उद्धार हो जायगा।
इसके ग्रन्थोंको खरीदकर पढ़ना, मन्दिरोंमें स्थापित करना और असमर्थ विद्वानोंको बाँटना, यह प्रत्येक जैनीका कर्तव्य होना चाहिए ।
ब्याह शादी, उत्सव, प्रतिष्ठा मेला आदि प्रत्येक मौके पर इस ग्रन्थमालाको सहायता देनी और दिलानी चाहिए।
जो धर्मात्मा किसी ग्रन्थकी कमसे कम २०० प्रतियाँ खरीद लेते हैं, उनका चित्र और स्मरणपत्र उस ग्रन्थकी तमाम प्रतियोंमें छपवा दिया जाता है। __ सौ रुपयेसे अधिक इकमुश्त सहायता करनेवालोंको मालाके सब ग्रन्थ भेटमें दिये जाते हैं।
-मंत्री।
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